▪️विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस को धूमधाम से मनाने वाला जंगल विभाग वृक्षों की कटाई पर श्रद्धांजली परेड कब आयोजित करती है।▪️
बालोद : वृक्ष हमारे जीवन में भोजन और पानी की तरह ही महत्वपूर्ण हैं। पेड़ के बिना जीवन बहुत कठिन बन जायेगा। लोगों को हरे वृक्षों और पौधों से मिलने वाली हवा भी नसिब नहीं होगी। ऐसे में सांस लेना और पाद छोड़ना लोगों की सब बंद हो जायेगी,अर्थात लोगों का राम नाम सत्य होना तय है,क्योंकि हमें जीवन जीने के लिए प्राणवायु की आवश्यकता बहुत जरूरी होती है। अतः विश्व पर्यावरण संरक्षण दिवस के अवसर पर हमारे सुधि पाठकों, हमें यह बताते हुए अत्यंत पीड़ा महसूस हो रही है, कि धरती पर बसने वाले धरती के भगवान यानी कि इंसानी ढांचा के रूप में मौजूद समस्त मानव जाति समाज अपनी स्वार्थ सिद्धि की पूर्ति हेतू जीवन के लिए अंत्यंत महत्वपूर्ण संसाधन हवा की गति को रोकने हेतू दिन रात हरे भरे वृक्षों की बलि देते हुए खुद हवा से भी तेज आगे निकलने के फिराक में जुटा हुआ है, जबकि सभी को एक ना एक दिन 6 फीट के गढ्ढा में दफन हो कर सबसे आगे निकलते हुए निपट जाना है। ऐसे में दिलचस्प बात यह है कि धरती के सभी प्राणी जगत मात्र में सबसे बुद्धिमान मानें जाने वाले जीव यानि कि इंसान वृक्षों को कांट कर धरती को खत्म करने पर क्यों तुला हुआ हैं। जबकि प्रकृति किसी ना किसी तरह से वृक्षों को कांटे जाने पर पर्यावरण को होने वाली नुकसान से धरती पर मौजूद इन बुद्धिजीवियों को परिचय कराने का प्रयास करती रहती है ताकि प्रकृति के द्वारा कराई जा रही परिचय को लेकर धरती के बुद्धिमानी जीव इंसान धरती को बचाने हेतू कुछ कारगार उपाय कर सके। हालांकि आज धरती से वृक्षों की संख्या लगातार घट रही है, जबकि समस्त मानव जाति के लिए वृक्षों का होना ना सिर्फ अत्यंत आवश्यक है, बल्कि पर्यावरण में संतुलन बनाए रखने हेतू अति आवश्यक है। ऐसे में हर साल करोड़ों हरे भरे वृक्षों को बेतहासा तरीके से कांटे जाने से इसका पर्यावरण पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है। साल 1970 के दशक में उत्तराखंड की महिलाओं द्वारा चिपको आंदोलन किया गया, जिसका मूल उद्देश्य पेड़ो की अंधाधुंध कटाई पर रोक लगाना था। इस आंदोलन के दौरान जब भी सरकारी कर्मचारी पेड़ो को काटने के लिए आगे बढ़ते ग्रामीण महिलाये पेड़ो से लिपट जाती थी। इस आंदोलन में 363 लोगों की मृत्यु हो गई थी। कुछ इसी तरह की आंदोलन छत्तीसगढ़ राज्य में हसदेव अरण्य अभ्यारण मामले को लेकर भी चलाई जा रही है। जंगलों को बचाने हेतू की जा रही आंदोलन हमें यह बताता है की पेड़ हमारे लिए कितने आवश्यक है। साथ ही यह आंदोलन हमें यह भी अवगत कराने का प्रयास करता है कि मानव जाति अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए अपने ही मानव जाति को खत्म करने से बाज नहीं आ रहे हैं तो वृक्षों की संरक्षण को लेकर क्या खाक ध्यान देंगे।
▪️छत्तीसगढ़ के वन विभाग को जंगल विभाग यूं ही नहीं कहते है लोग बाग▪️
हम सब ने एक बहुचर्चित कहावत सुन रखा है कहते हैं कि सौ चूहे खाकर बिल्ली हज को चली। बहरहाल इस कहावत को इन दिनों चरितार्थ करने की सुचना छत्तीसगढ़ राज्य में मौजूद वन विभाग के द्वारा किए जाने की सूचना प्राप्त हुई है। राज्य में वन अमला जिसे आमतौर पर लोग बाग जंगल विभाग के तौर पर भी जानते हैं। बकायदा इस कहावत को चरितार्थ करते हुए छत्तीसगढ़ राज्य जंगल में मौजूद जंगलों को निस्ता नाबूत करने की जानकारी लगातार प्राप्त होंती रहती है। कहने को तो छत्तीसगढ़ राज्य में मौजूद जंगल विभाग जंगल बचाने की सौगंध खाकर जनता की मेहनत की कमाई को हजम करते हुए अपनी जिम्मेदारियो का निर्वहन ईमानदारी से पूरा करने की बात हमेशा से कहते हुए आ रही है,
लेकिन हकीकत के धरातल पर मौजूद मंजर को देखकर कोई भी यह आसानी से कह सकता है कि जंगल विभाग में मौजूद जंगल विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की यह बात सफेद हाथी की तरह है। दरअसल झुठी वाहवाही बटोरने हेतू कहीं गई दावे की सच्चाई को लेकर जंगल विभाग में पदस्थ अधिकारियों और कर्मचारियों को खुद पता नहीं है। क्योंकि जंगल में जब मोर नाच होता है तब उसे देखने वाला जंगल विभाग के ज्यादातर अधिकारी ही होते हैं। इसलिए जंगल विभाग में पदस्थ कुछ अधिकारियों और कर्मचारियों को जनता के द्वारा दी जा रही मेहनत की कमाई हजम नहीं हो पाई है। जिसके चलते बालोद जिला में जंगल की रकबा दिनों दिन लगातार कम होने की संभावना आगे और भी जताई जा रही है। जिला में लगातार अवैध तरीके से हो रही हरे वृक्षों की कटाई को लेकर ऐसा नहीं कि जंगल विभाग बालोद में पदस्थ अधिकारियों को पता नहीं है। जंगल विभाग बालोद के अंदर पदस्थ जंगल विभाग के अधिकारी और कर्मचारीयो को अवैध वृक्षों की कटाई से संबंधित विषयों की पूरी जानकारी है लेकिन जंगल विभाग बालोद के द्वारा हरे वृक्षों को बलि देने वाले अवैध लकड़ी कोचियों से जंगल विभाग का कार्य कराने की सूचना भी प्राप्त हुई है।ऐसे में जंगल विभाग की जंगल के प्रति मानसिकता को अध्ययन करने की आवश्यकता महसूस किया जा रहा है। वैसे भी जंगल विभाग बालोद की जंगल को लेकर मानसिकता पहले भी कई बार उजागर हुई है जिसके बावजूद जंगल में मंगल का यह खेल बिते कई दौर से बेहिसाब जारी होने की सुचना प्राप्त हुई है। हालांकि जंगल विभाग बालोद इज्जत बढ़ाने हेतू कुछ जगहों पर वृक्षारोपण जैसे कार्य को अमलीजामा पहनाने हेतू सरकारी पैसों का जमकर इस्तेमाल किया है लेकिन जंगल विभाग बालोद के द्वारा किए गए वृक्षारोपण कार्य से जुड़े हुए धांधली को लेकर भी कई सवाल खड़े किए जा रहे हैं।
@vinod netam