गोदी मिडिया की बढ़ती हुई लोकप्रियता से गदगद हो रहे हैं देश की अवाम ।भारत में प्रेस आफ फ्रिडम को लेकर काफी लंबे समय से बहस छिड़ी हुई है लेकिन हकीकत यह है कि भारत में प्रेस की आज़ादी मुकम्मल नहीं हो सकता है। जानकारों की माने तो सरकार और पत्रकार मिलकर दोनों जनता को बेवकूफ बनाने में तूले हुए हैं जिसके चलते दोनों की खूब कमाई हो रही है। हालांकि पत्रकारो को जनता के प्रति जवाबदेह बने रहना चाहिए बिलकुल ठीक उसी तरह जिस तरह सरकार की भी जिम्मेदारी तय की गई है जनता के प्रति,लेकिन विडम्बना यह है कि सरकार ही जब जनता के प्रति गैर जिम्मेदार हो तो क्या प्रेस ईमानदार बने हुए रह सकता है। निश्चित तौर पर हरगिज़ नहीं ऐसे में विपक्षी राजनीतिक दल के ज्यादातर नेता गोदी मिडिया को लेकर बिते कुछ वर्षों से खुलेआम हाय तौबा ऐसे मचाते हुए गली गली शहर शहर देखें जा रहे हैं,लेकिन देश के अंदर जिन राज्यों में कांग्रेस पार्टी या विपक्षी राजनीतिक दलों की सरकारें हैं। वंहा की मिडिया क्या ईमानदार हैं? कभी विपक्षी राजनीतिक दलों को भी अपने यंहा की गोदी मिडिया की एक ओर एक बखत झांक लेना चाहिए जिन्हें जनता के लिए परोसी गई खाने को सफाचट कर जाने का चस्का लगा हुआ है। जबकि सच्चाई को उजागर करने वाले लोग विपक्षी दलों की जहां पर सरकार चल रही है वंहा पर दबोचे जा रहे हैं। अब सवाल यह उठता है कि आखिरकार जनता से जुड़े हुए विषयों पर सवाल खड़े करने वाले लोग क्यों जेलो में बंद किए जा रहे है। मामले को लेकर सरकार के इशारे पर काम करने वाले ज्यादातर मिडिया संस्थान इस खबर से मुंह छुपा रहे है। उदाहरण के तौर पर छत्तीसगढ़ को देख लिजिए जंहा पर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार ने कहने को तो पूरे राज्य भर में पत्रकार सुरक्षा कानून लागू कर रखा है। जिसके बावजूद राज्य में सच्चाई को उजागर करने वाले पत्रकारों के अंदर असुरक्षा का भाव कुट कुट भरा हुआ है। सच्चाई पर कलम चलाने वाले पत्रकारों के मन में इस तरह की भाव कैसे उत्पन्न हो रहा है और इस तरह की भाव को पत्रकारों के मन से निकालने के लिए क्या प्रयास करती है यह कहा नहीं जा सकता है,लेकिन राहुल गांधी समेत तमाम विपक्षी राजनीतिक दलों को यह सोचना चाहिए कि मिडिया संस्थान जंहा की हो स्वतंत्र रहना चाहिए ताकि विपक्षी राजनीतिक दलों से जुड़ी हुई खबर भी उजागर किए जा सकें। चूंकि छत्तीसगढ़ राज्य के अंदर गोदी मिडिया का एक बड़ा हुजूम कांग्रेस पार्टी की सरकार में दमाद की भूमिका में होने की चर्चा आम जनता के मध्य घर कर गई है। ऐसे में कांग्रेस पार्टी को छत्तीसगढ़ में गोदी मिडिया से संबंधित विषयों पर बयानबाजी करते बखत लोगों के द्वारा कि जा रही चर्चाओं पर भी ध्यान देना चाहिए।
गोदी मिडिया की गिरती हुई साख पर रविश कुमार के द्वारा द वायर में लिखी गई खबर का अंश।
मुझे रिपब्लिक भारत की श्वेता और रिपब्लिक इंडिया के पीएम के लिए बुरा लग रहा है. 14 जून से एक वीडियो वायरल है. यह वीडियो रिपब्लिक भारत की एंकर श्वेता का है. श्वेता स्टूडियो में छाता लेकर एंकरिंग कर रही हैं. पीछे विशालकाय स्क्रीन पर एक दूसरा वीडियो चल रहा है, इसमें तूफ़ानी हवा चल रही है. हवा वीडियो में चल रही है और श्वेता स्टूडियो में हिल रही हैं. इसे देखकर लोग हंस रहे हैं मगर श्वेता वीडियो में गंभीरता के साथ हिली जा रही हैं.
यह नरेंद्र मोदी का आज का भारत है और उनके दौर का मीडिया है. इस तरह से होने लगा तो जल्दी ही मोदी समर्थक सिनेमा हॉल में गोली चलने के सीन पर कुर्सी उखाड़ कर कवच बना लेंगे. कवच को सीने से चिपकाकर पर्दे के सामने जाएंगे और गोली चलाने वाले को पकड़ने के लिए पर्दा ही फाड़ देंगे. आज के भारत का मानसिक और बौद्धिक स्तर यही हो चुका है. वर्ना गोदी मीडिया से ज़्यादा आम दर्शक इसकी आलोचना करता.
एंकर श्वेता की आलोचना हो रही है और इसके मालिक की भी. सारी दुनिया के सामने उसका मज़ाक़ उड़ रहा है. इस वीडियो को देखना वाक़ई दुखद है. मैं नहीं चाहता कि आप श्वेता का मज़ाक़ उड़ाएं. यह श्वेता का चुनाव नहीं होगा. उसे करते वक़्त भी बुरा लगा होगा. डरी-सहमी अपनी नौकरी की चिंता करते हुए स्क्रीन के पास गई होगी और हिलने-डुलने लगी होगी. इसकी रिकॉर्डिंग करने वाली टीम हंस रही होगी.
कोई साहित्यकार इस सीन को कल्पना में ढालता, तो ऐसे लिखता. उस दिन श्वेता की तूफ़ानी एंकरिंग के बाद संपादक अपने कमरे से निकला और सभी के सामने श्वेता की तारीफ़ करने लगा कि यही टीवी है. एक्शन होना चाहिए. हमें श्वेता की एनर्जी चाहिए. सभी ने इस बात पर ज़ोरदार तालियां बजाई. लेकिन दुनिया के सामने श्वेता ने अकेले गाली खाई. उस दिन संपादक न्यूज़ रूम में मोदी जी की तरह घूमता रहा, सबको घूरते हुए बाद में अपने कमरे में चला गया. संपादक ने दरवाज़ा बंद किया और शिखर गुटखा खा लिया. जब भी वह इस तरह की पत्रकारिता पर तारीफ़ करता, कमरे में गुटखा खाता था ताकि गले में जो पत्रकारिता अटकी है, उसे गुटखे के साथ पीकदान में थूक दे. कहानी समाप्त.
इस वीडियो को देखकर यही लगा कि श्वेता और न जाने कितने युवा साथी इन चैनलों में गुलाम की तरह काम कर रहे हैं. ये छटपटा रहे हैं कि कोई इन्हें इन चैनलों से बचा लें मगर अब कोई चैनल ही नहीं है, जहां जाकर ये नौजवान ढंग की नौकरी कर सकें. हर चैनल नष्ट किया जा चुका है. मैं मानकर चलता हूं कि श्वेता जैसे युवा पत्रकारिता की पढ़ाई पत्रकारिता के लिए ही करते होंगे. अपने लिए अच्छी रिपोर्ट, अच्छी एंकरिंग का सपना देखते होंगे. 2014 के बाद इस पेशे को ही समाप्त कर दिया गया. जब वे पढ़ाई पूरी कर बाहर आए होंगे तो उस पढ़ाई को जीने के लिए पेशा और संस्थान ही नहीं बचे. यह कुछ ऐसा है कि आप एमबीए की पढ़ाई कर निकलते हैं और शहर से सारी कंपनियां ग़ायब हो जाती हैं.
यह भी सही है कि अब बहुत से नए और पुराने पत्रकार दिल और दिमाग़ से मोदी-मोदी करने लगे हैं. एंटी-मुस्लिम पत्रकारिता ने उन्हें उसी पाले के किसी उत्पाती दल का कार्यकर्ता बना दिया है. फिर भी मैं यक़ीन करना चाहूंगा कि रिकॉर्डिंग करते वक़्त श्वेता को अच्छा नहीं लगा होगा. इस वीडियो के वायरल होने पर श्वेता काफ़ी परेशान होंगी. यह उस विश्व गुरु भारत की लफंदर हो चुकी पत्रकारिता के कारण हुआ जिसमें घुसने के लिए तो एक ही दरवाज़ा है, मगर इससे निकलने के रास्ते बंद कर दिए गए हैं.
एक समय था और आज भी है, जब बहुत से फ्रॉड लोग पत्रकार या किसी न्यूज़ चैनल का आईकार्ड अपनी कार पर चिपकाकर घूमा करते थे, अब वही काम न्यूज़ चैनल वाले कर रहे हैं. अख़बार वाले कर रहे हैं. ख़ुद फ्रॉड करते हैं और पहचान पत्र असली दे देते हैं. अब तो सबने मान लिया होगा कि पत्रकारिता करनी है तो अब पत्रकारिता के नाम पर ही काम करना होगा.
अफ़सोस होता है. हम लोगों को कितने मौक़े मिले. खूब सराहनाएं मिला करती थीं. एडिटर, कैमरापर्सने के साथ बहस होती थी कि तुमने सही शॉट नहीं लिया, तो तुमने सही एडिट नहीं की. दोनों मिलकर रिपोर्टर की क्लास लगा देते थे कि तुमने ही ठीक से रिएक्ट नहीं किया वर्ना फ़्रेम सही था. हालत यह थी कि दूसरे चैनल के संपादक और साथी रिपोर्टर अगले दिन स्टोरी की बात करते थे. इन चैनलों में काम करने वाले पत्रकार अब क्या बातें करते होंगे? दारू भी अच्छी ब्रांड की नहीं पीते होंगे? शायद गौ मूत्र की पार्टी करते होंगे. एक एंकर तो गौ मूत्र की खूबियां बताता है. ख़ुद नहीं पीता है. ग़नीमत है कि इस देश में गुटखा की सप्लाई बंद नहीं हुई है. कैंसर होता है फिर भी लोग गुटखा खा रहे हैं. यह पत्रकारिता नहीं है, जानते हैं मगर वही कर रहे हैं. ये कर नहीं रहे हैं, इनसे करवाया जा रहा है.
पूरा यक़ीन है कि श्वेता और उसके घर वाले इस वायरल वीडियो को देख नहीं पा रहे होंगे. जिस तरह की मोदी की लोकप्रियता बताई जाती है, मैं मानकर चलता हूं कि श्वेता के घर में भी मोदी-मोदी होता होगा. क्या उसके माता-पिता इसी मोदी के दौर में अपनी बेटी को पत्रकार की इस भूमिका के रूप में देख पाते होंगे? क्या श्वेता अपने माता-पिता या उसके माता-पिता श्वेता से नज़र मिला पाते होंगे कि शानदार एंकरिंग की है तुमने या हंसते होंगे कि क्या यार, हमारे मोदी जी ने भारत को विश्व गुरु बनाने के नाम पर तुम पत्रकारों को विश्व धूर्त बना दिया है।