●तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है
●मगर ये आंकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है
●उधर जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो
●इधर परदे के पीछे बर्बरीयत है ,नवाबी है
●लगी है होड़ - सी देखो अमीरी और गरीबी में
●ये गांधीवाद के ढाँचे की बुनियादी खराबी है
●तुम्हारी मेज़ चांदी की तुम्हारे जाम सोने के
यहाँ जुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है।
टाप भारत डेक्स : अदम गोंडवी साहब की यह शायरी देश के उन तमाम देश वासियों को समर्पित है जो इस देश की पवित्र भूमि से बेइंतहा मोहब्बत करते है, क्योंकि अपने देश से बेइंतहा मोहब्बत करने वाले देशवासियों को हमारी नुमाइंदगी करने वाले हुक्मरानों ने सालों साल से बेवकूफ समझ रखा है और ये लोग अपनी निजी स्वार्थ सिद्धि के लिए धर्म को राजनीति करने का एक जरिया बना दिया है। आज हम्हूरियत के नाम पर हमारे यहीं हुक्मरान अपनी असल चेहरा की खुलेआम नुमाइश करने पर उतारू हो चले हैं। भले ये कितने भी सरीफयत का चोला पहन लें, लेकिन हकीकत के धरातल पर जो मंजर इस वक्त मौजूद हैं वह बिलकुल कुरान ए पाक, पवित्र गीता की तरह साफ और स्पष्ट है। राजनिति के पाठशाला में राजनीति से संबंधित विषयों का अध्ययन करने वाले छात्रों को राजनीति शास्त्र का ज्ञान देने वाले राजनीतिक पंडितों की मानें तो किसी भी राजनेता को राजनीति के लिए धर्म का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए,क्योंकि इससे ना सिर्फ धर्म का नाश होता है बल्कि राष्ट्र और समाज का भी बड़ा नुक़सान संभव है। आज के वर्तमान दौर में हमारे हुक्मरान जरा दूसरे किस्म के बताएं जाते हैं। शायद इसलिए इन्हें राजनीति के पाठशाला में राजनीति शास्त्र से संबंधित विषयों की जानकारी रखने वाले राजनीतिक पंडितों की सलाह की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि आज के दौर की राजनीति, राजनीति की पाठशाला में राजनीति शास्त्र का ज्ञान देने वाले राजनीतिक पंडितों की समझ से बाहर है। आज के वर्तमान दौर में ज्यादातर राजनेताओ को पद पावर और पैसा चाहिए चाहे वह किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े हुए माई का लाल हो। अतः वर्तमान समय के हमारे हुक्मरान अपने अंदाज से राजनीति करना पसंद करते हैं। चाहे इनके इस राजनीति के चक्कर में देश और समाज गर्त में चली जाए, इन्हें तो बस सत्ता पर कब्जा से मतलब है। इसके लिए कोई मोहब्बत की दुकानदारी करने को तैयार है तो कोई पतल उठाने तक को तैयार है। बहरहाल हम बात करते हैं संगोल की जिस पर चर्चा का बाजार गर्म है।
दरअसल पिछले दिनों देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश को नई संसद भवन का सौगात भेंट किया है। नई सदन भवन की उदघाटन समारोह को लेकर देश के अंदर खूब राजनीतिक नूरा कुश्ती इस दौरान लोगों को देखने को मिली है। विपक्ष के ज्यादातर राजनीतिक दलों ने नई संसद भवन उद्घाटन सामरोह से बाईकाट करते हुए केन्द्र में मौजूद मोदी सरकार को खूब बुरा भला कह दिया,जबकि इस सदन में उन्हें भी एक दिन देश का बागडोर संभालते हुए बैठना है। विपक्षी राजनीतिक दलों का इस तरह से बाईकाट करना क्या संसदीय मर्यादाओ के अनुरूप है यह तो विपक्षी राजनीतिक दल ही जाने, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की मजबूत सरकार विपक्षी राजनीतिक दलों की ओर से उछाली जा रही तमाम राजनीतिक आरोपो को दरकिनार करते हुए अपनी विचारधारा के अनुरूप इस कार्य को करने में सफल हुए हैं यह बड़ी बात है। इस बिच नये सदन में स्थापित किए गए सेंगोल पर बवाल मचना शुरू हो गया है। सोसल मीडिया में तरह तरह की बातें सोसल मीडिया यूजर लिख और कमेंट कर रहे हैं। लोगों की मानें तो सेंगोल का मतलब राजदंड है। इसे एक राजा के द्वारा दूसरे राजा को सत्ता हस्तांतरण करने के बख्त दिया जाता है। कई दूसरे सोसल मीडिया यूजर कुछ और दुसरे तरह की बातें लिख रहे हैं। खैर जो भी हो बहरहाल केन्द्र सरकार इस सेंगोल को राष्ट्रीय धरोहर के रूप में भारत की नया सदन में स्थापित कर दिया है। सरकार को इसे सदन में स्थापित करने की क्या आवश्यकता पड़ी है यह तो केन्द्र सरकार ही जाने लेकिन आजादी के 75 साल बित जाने के बाद भी नैतिकता विहिन लोकतांत्रिक मूल्यों का प्रदर्शन करने वाले भारत की नई सदन में स्थापित की गई यह सेंगोल आगे आने वाले दिनों में भारतीय राजनेताओं को नैतिकता की मूल्य समझाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा यह चिंतन का विषय है।
चूंकि जिस वक्त यह सेंगोल देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के हाथों से भारत के पवित्र मंदिर के नये भवन में स्थापित किया जा रहा था, ठीक उसी वक्त देश के महिला पहलवानों को वंहा से महज कुछ ही दूरी पर घसिटा जा रहा था।आजादी के 75 साल बीत जाने के बाद लोगों की जीवन शैली में बदलाव हो या ना हो लेकिन खुशी की बात यह है कि देश के अंदर बदलाव लाने की झूठी कसमें खा कर मलाई के छिलके तक को हजम कर जाने वाले हमारे हुक्मरानों को नया सदन का सौगात भेंट स्वरूप मिल गया है। आज केन्द्र में स्थित नरेंद्र मोदी की सरकार देश के अन्य और भी जितनी भी सरकार रही है उनमें से काफी मजबूत सरकार मानी जाती है, लेकिन जो सरकार ताकतवर होने के बाद पिड़ितो को न्याय दिलाने से वंचित रहे ऐसे सरकार को अपनी इस मजबूती को मजबूरी कहने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए। आखिरकार केन्द्र में मौजूद भाजपा की नरेन्द्र मोदी सरकार बृजभूषण शरण मामले को लेकर गैर जिम्मेदाराना रवैया अपनाने पर क्यों तूली हुई है। यदि बृजभूषण शरण सिंह निर्दोष है तो देश में कानून का राज है और बकायदा इस मामले में कानून का पालन होना चाहिए बजाए बयानबाजी और धरना की यदि बृजभूषण शरण सिंह की जगह दूसरे राजनीतिक दल के नेता होते और उन पर यह आरोप लगा होता तब तो पता नहीं क्या हो गया होता,लेकिन भाजपा के सांसद होने के नाते बृजभूषण शरण सिंह जबदस्ती खुद को बैगर जांच पड़ताल के निर्दोष साबित करने पर तुले हुए देखे जा रहे हैं। क्या यह उचित नहीं होता कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी नये संसद भवन में स्थापित की गई सेंगोल को पकड़ कर यह कह देते की देश के अंदर कोई भी अपराधी हो वह बक्सा नहीं जायेगा चाहे वह कोई भी पार्टी से वास्ता रखता हो यंहा तक बृजभूषण शरण सिंह को भी नया संसद भवन उद्घाटन सामरोह और सेंगोल स्थापित करने से पहले कानून के हवाले कर देना चाहिए था ताकि मजबूत और सशक्त भारत की छवि पूरे संसार एक बार फिर देख सकें।