रायपुर/गंजपारा में छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना की बैठक हुआ संपन्न, बूढ़ादेव यात्रा के पोस्टर का किया गया विमोचन, छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना ने कहा - बूढ़ादेव महायात्रा की दूसरे चरण की तैयारी पूर्ण, छत्तीसगढ़ के प्रत्येक गांव में पहुंचेगा बूढ़ादेव रथ, 8 अप्रैल को रायपुर में होगा कांसा अर्पण का कार्यक्रम, इसके बाद पारंपरिक अनुष्ठान के साथ तैयार होगा बूढ़ादेव का सल्ला गागरा*
बालोद - गंजपारा में छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना की एक दिवसीय संगठनात्मक बैठक सम्पन्न हुई। जिसमें रायपुर के बूढ़ातालाब में कांसा से तैयार होने वाले विश्व के सबसे बड़े बूढ़ादेव की प्रतिमा के पोस्टर का विधि-विधान से विमोचन किया गया। इस दौरान छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना के प्रदेशाध्यक्ष श्री अमित बघेल ने कहा कि छत्तीसगढ़ में एक नया इतिहास दर्ज होने वाला है। छत्तीसगढ़ के कुल देवता-मूल देवता बूढ़ादेव को रायपुर के बूढ़ातालाब में स्थापित किया जाएगा। जिसकी तैयारी पूर्ण हो चुकी है। पूरे राज्य के प्रत्येक गांव में बूढ़ादेव का रथ पहुंचेगा और छत्तीसगढ़िया समाज से दान स्वरूप कांसा लिया जाएगा। जिसे 8 अप्रैल को रायपुर में बइगा-सिरहा के द्वारा पारंपरिक अनुष्ठान कर मूर्तिकार को निर्माण के लिए सौंपा जाएगा।
*छत्तीसगढ़िया समाज में अपने पूर्वजों को पूजने की परंपरा, वही बूढ़ादेव और बूढ़ीदाई*
बैठक के दौरान छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना के प्रदेशाध्यक्ष श्री अमित बघेल ने कहा कि बूढ़ादेव किसी एक जात के देवता नहीं हैं। वे तो संपूर्ण छत्तीसगढ़ के देव हैं। कोई बड़ादेव कहता है तो कोई बूढ़ादेव। छत्तीसगढ़िया समाज में आदिकाल से ही अपने पूर्वजों को पूजने और उनकी उपासना करने की परंपरा चली आ रही है। दूसरी तरह से समझा जाए तो छत्तीसगढ़ में बूढ़े बुजुर्ग के पंचतत्व में विलीन होते ही उन्हें देव रूप में मान कर उनकी पूजा की जाती है। उन्हें ही श्रद्धा भाव से बूढ़ादेव माना जाता है। छत्तीसगढ़ में रहने वाले हर मूल निवासी के यहां पूजा घर में मिट्टी की दो या तीन पिंडी होती है। यही पूर्वज देव हैं और इन्हें ही बूढ़ादेव कहा जाता है।
*भाई बटवारा पर मिट्टी की पिंडी का भी होता है बराबर हिस्सा*
छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना के प्रदेशाध्यक्ष अमित बघेल ने आगे बताया कि छत्तीसगढ़ का व्यक्ति कहीं भी हो। त्योहार में नवाखाई पर अपने मूल पैतृक गांव पहुंचता ही है। पैतृक गांव के पूजा कमरे में रखे मिट्टी की पिंडी की स्तुति करता है। जब परिवार बड़ा होने पर भाई बटवारा किया जाता है तब समानों के हिस्से के साथ देव घर के मिट्टी की पिंडी (लोंदी) को फोड़ कर बराबर-बराबर बांटने का रिवाज है। ताकि पूर्वजों का आशीर्वाद समान रूप से दोनों को मिल सके। यही छत्तीसगढ़ की मूल परंपरा है, मिट्टी को पूजने और मिट्टी संग जुड़े रहने की। छत्तीसगढ़ के लोग अपनी मूल सभ्यता को जान पाए इसी उद्देश्य के साथ पूरे प्रदेश में बूढ़ादेव यात्रा का आगाज किया गया है।
*प्रदेश भर के देव स्थलों की माटी से बनाया गया चौरा*
छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना के संरक्षक सदस्य ललित बघेल ने बताया कि पिछले साल बूढ़ादेव यात्रा के दौरान प्रत्येक ग्राम के देवस्थलों की माटी को बूढ़ादेव चौरा में विधि-विधान से अर्पित किया गया। चौरा निर्माण हो चुका है अब इसी स्थान पर कांसा में पांच धातुओं के मिश्रण से भगवान बूढ़ादेव का निर्माण किया जाएगा। 8 अप्रैल को सम्पन्न होने वाले इस कांसा अर्पण के आयोजन में पूरे छत्तीसगढ़ के लाखों लोग अपनी पारंपरिक वेशभूषा में शामिल होंगे।
इन्हें दी गई नई जिम्मेदारी
छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना के जिला कोर कमेटी की अनुशंसा पर संगठन के जिला समन्वय समिति के द्वारा जितेंद्र साहू को छत्तीसगढ़िया क्रान्ति सेना बालोद खंड महामंत्री की जिम्मेदारी सौंपी गई। वहीं छत्तीसगढ़िया छात्र क्रान्ति सेना के नए अध्यक्ष कामता साहू, उपाध्यक्ष ईशा ठाकुर और जनक देवांगन को मीडिया प्रभारी नियुक्त किया गया। इस दौरान शशिभूषण चंद्राकर, चंद्रभान साहू, देवेंद्र साहू, ललित कांवरे, डी देशमुख, नरेंद्र साहू, सुभाष साहू, राजू साहू, प्रकाश निषाद, दानी साहू, कमलेश साहू, केदार साहू, सूरज सेमरे, चम्मन साहू, दुलार साहू, टेकराम साहू, खोमन साहू, मिथलेश तारम, नमन कोसमा, झम्मन हिरवानी, इमेश साहू, दीपक सहारे प्रमुख रूप से उपस्थित थे।