@विनोद नेताम
साहेब की जो शाल जमीन चूम रही है करीब सत्रह सौ डॉलर की है। अठारह परसेंट जी एस टी जोड़ दें तो दो हज़ार डॉलर पार ।
एक डालर बयासी रुपए का चल रहा है। जोड़ गुणा खुद कर लीजिए और याद रखिए साहेब एक परिधान को सिर्फ़ एक बार पहनते हैं।
विश्वबैंक कहता है कि दुनिया के सबसे दरिद्र लोगों का सबसे बड़ा रेवड़ भारत में ही है,जो हूजूर के सत्ता में आने के बाद नाइजीरिया को पछाड़ कर दुनिया में अव्वल हो चुका है। इन लोगों की औसत सालाना आय कुल चार सौ डालर के आसपास है। गौरतलब हो कि देश में गरीबी का आलम जो मौजूद है धरातल पर उसे लाकडाउन के दौरान फंसने वाले मजदूरों की चिख और पुकार को देखकर समझा जा सकता है। बावजूद इस वक्त देश में मंहगाई चरम पर है और बेरोजगारी की हालत इतनी खराब और गंभीर बताई जा रही है कि बंया तक नहीं किया जा सकता है। इस बीच हूजूरे आला को गाली याद रह जाती है। हैरान करने वाली बात है, जबकि बेरोजगारी जो आज की दौर में सबसे बड़ी गाली के रूप में मशहूर हो चुकी है। उस गाली को देश के युवा तिल तील कर जी रहे है और हूजूरे आला दो हजार डॉलर वाला साल ओढ़कर ठंड का मजा ले रहे हैं। कैमरे हूजूरे आला के साथ चलती है, जबकि देश के अंदर मौजूद पिड़ित, शोषित,विंचिंत परिवारों को कैमरा तक नसीब नहीं है। बताया जाता है,कि हूजरे आला ने ज्यादातर कैमरे को अपने वाहवाही के चक्कर में व्यस्त कर रखा है। बताइए क्या ऐसा करना सही है? हूजरे आला विज्ञापन पर भरोसा नहीं करते हैं, शायद धरातल के कामकाजो पर उन्हें पसीना और समय बहाना कुछ ज्यादा ही पसंद है। हूजूरे आला दिन के चौबीस घंटे में 18 से 20 घंटा कामकाज पर नजरें गड़ाए रखते हैं। हालांकि कुछ दिन पहले साहब देश के आम नागरिकों को गुजरात चुनाव में और हिमाचल प्रदेश के चुनाव प्रचार में दिखाई दिए थे, जबकि इस दौरान हूजूरे आला देश में मौजूद गरीबों की बच्चों के पेट कांट कर जुटाई गई पैसों का इस्तेमाल कर रहे थे। गजब की फोलिस्पी है,भारतीय राजनीति की,पैसा पब्लिक का और काम पार्टी का। इस दौरान सुप्रिम कोर्ट भी सरकार से नोटबंदी की फैसला पर जानकारी चाह रही है,तो वंही दूसरी ओर पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग के चयन प्रक्रिया पर सवाल उठा कर हजूरे आला की दाढ़ी तक में हलचल मचा दिया था। हूजरे आला की दाढ़ी में मची हलचल की मंजर इतना भयानक था कि विरोधी खेमा तक इस मंजर को देखकर लगभग यह मान चुके थे की इस बार तो हूजूरे आला की दाढ़ी कटी। गुजरात की बंपर जीत ने विरोध खेमा की सारी सोंच और किये कराये पर पानी फेर दिया नौबत तो यंहा तक आ पहुंची की विरोधी खेमा में मौजूद शूरमाओ तक की इन दिनों दाढ़ी बढ़ गई है। विरोधी खेमा विगत दिनों सुप्रीम कोर्ट में हूजूरे आला को बैकफुट पर खड़ा जानकार तिरछी नजर से घूर रही थी, लेकिन अब उन्हें घुरने में भी एर्लजी फिल हो रही है। इससे पहले विरोधी इतने उतावले नजर आ रहे थे कि तमाम सवालों को लेकर हूजेरे आला की जबदस्ती हजामत बनाने पर उतारू हो कर उन पर लगभग चढ़ बैठे थे। बहरहाल गुजरात में बंपर जीत विरोधीयों के मूंह पर भी ताला जड़ दिया है अतः विरोधी गतिविधियों पर कुछ हद तक हूजूरे आला को कामयाबी हासिल हो गई है यह मान लिया जाए तो कोई ग़लत नहीं होगा।
बहरहाल भारत कबीर की धरती है और इसी धरती से कबीर ने इसी धरतीवासियों को आईना दिखाते हुए कहा है कि कबीरा सोई पीर है,जो जाने पीर।
जो पर पीर न जानही,सो का पीर में।
अर्थात जो इंसान दूसरे की पीड़ा और दुख को समझता है वहीं सज्जन पुरुष है और अतः दूसरे की पीड़ा ही ना समझ सके ऐसे में इंसान होने का क्या मतलब यानी कि मनुष्य को सज्जनता पूर्वक आचरण करना चाहिए।
स्वतंत्रता के बाद से देश में रोटी कपड़ा और मकान की जद्दोजहद जो नजर आई थीं वह आज भी निरंतर बकरार है, जबकि हूजूरे आला की दावे धरातल पर काफी असरदार है। इससे पहले भी जितने सरकार धरा पर मौजूद रहे चुके है उनके भी दावे धरातल पर आधे अधूरा पड़ा हुआ नजर आता है। ऐसे में हूजूरे आला को अपनी दावे को टटोलने की नितांत आवश्यकता है। हालांकि भारतीय राजनीति में व्याप्त स्वार्थ सिद्धि प्रयोजन के चलते यह अधूरापन भारतीय राजनेताओं को महज चुनाव के समय याद आता है बांकी समय भारतीय राजनेताओं को भारत की भविष्य बनाने की चिंता लगी रहती है और इसलिए अपने बच्चों को विदेशी स्कूलों में तालीम दिलवाते हैं। अपने परिजनों को विदेशी मंहगे हास्पिटलो में इलाज की व्यवस्था दिलवाते है। निश्चित रूप हूजरे आला 5 बिलियन डॉलर इकोनॉमी तक देश को पहुंचाने हेतू प्रयासरत है। देश में आज भी गरीबी और बेरोजगारी एक भंयकर बिमारी है, जिसके बावजूद हूजूरे आला की हुकूमत सब पर भारी है।