@विनोद नेताम रायपुर : छत्तिसगढ़ राज्य में विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे समीप आता जा रहा है, ठीक वैसे-वैसे राज्य के सियासी सरजंमी पर राजनीतिक सरगर्मियां और नेताओं की बयानबाजी तेज गति से बढ़ती हुई नजर आ रही है। पिछले दिनों छत्तिसगढ़ राज्य के वर्तमान भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की सरकार को रोजगार संबंधी आंकड़ों पर तंज कसते हुए सोसल मीडिया के जरिए निशाना साधा हैं। भाजपा प्रदेशाध्यक्ष अरूण साव ने छत्तिसगढ़ सरकार के मुखिया मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के रोजगार संबंधी आंकड़ों पर सवाल उठाते हुए IS भर्ती मामला और राज्य में रोजगार के आंकड़ों का जिक्र किया है। अब बात रोजगार की है लिहाजा नरेंद्र मोदी सरकार की वे हसीन वादे भी याद किए जाने चाहिए जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश के युवा बेरोजगारों के सामने रख कर छोड़ दिया है। अतः मौजूदा भाजपा प्रदेश अध्यक्ष अरुण साव को खुद की राजनीतिक पृष्ठभूमि का आंकलन करते हुए भूपेश बघेल की सरकार पर आरोप मढ़ना शायद उचित रहता, चूंकि नेताओं में एक विडम्बना पाई जाती है,कि उन्हें अपनी दामन में लगी हुई दाग कभी दिखाई देता है। अतः छत्तिसगढ़ राज्य सरकार द्वारा किए जा रहे रोजगार संबंधी आंकड़ों पर अरूण साव का यह तंज धरातल पर मौजूद मंजर के अनुसार फिट कंहा फिट बैठता है यह समझना होगा। यदि अरूण साव इस बिच केंद्र सरकार के रोजगार संबंधी दावों पर दो शब्द भूल से लिख जाते तो सोने पर सुहागा हो जाता। दराशल केंद्र में मौजूद नरेन्द्र मोदी सरकार हर साल नौकरीयों का अंबार खड़ा करने की दलीलो को मजबूती से देश के बेरोजगार युवाओं के मध्य लोकसभा चुनाव के पहले रखा था। नरेंद्र मोदी की नमो लहर को लोकसभा के चुनावी आंधी में सफलता दिलाने वाले देश के यही बेरोजगार युवा है। जिन्हें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बकायदा भाईयो, बहनों , बेरोजगार साथीयों और अंत में मित्रो कहते हुए युवा बेरोजगारो से सरकारी नौकरीयां दिलाने का वादा किया था। वर्तमान समय के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की युवाओं से किया गया नौकरीयो पर वादों की जमीनी सच्चाई भी छत्तिसगढ़ राज्य सरकार के रोजगार संबंधी दावों की तरह कागजी सफेद झूठ बन कर रह गई है। इन दिनों छत्तीसगढ़ राज्य के ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में निवासरत ग्रामीण बासिंदे धान के फसलो की कटाई में व्यस्त है। सर्व विदित है कि राज्य के ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में किसान और कृषि से जुड़े हुए मजदूर परिवारों का बसेरा है। ज्यादातर ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में रहने वाले किसान और मजदूर परिवार फसल कटाई के बाद विवाह योग्य युवक के लिए विवाह योग्य युवती तलाशने में जुट जाते हैं। गरीब राज्य होने के बावजूद राज्य के ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में रहने वाले गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारो की बेटीयां शिक्षा के मामले में युवाओं से बेहतर है। याने कि राज्य में बेटीयां लड़कों के मुकाबले ज्यादा शिक्षित है। निश्चित रूप से यह एक अच्छा समाजिक परिवर्तन का उदाहरण माना जा सकता है। राज्य हर गांव में विवाह योग्य युवतियां पढ़ी लिखी है। अब विवाह योग्य पढ़ी लिखी युवतियों को अपने भावी जीवन हेतू सरकारी नौकरी वाला दुल्हा चाहिए होगा,और जिस हिसाब से उनके पालकों द्वारा युवतीतो को पढ़ाई लिखाई में बेहतर बनाया है। ऐसे में हर पालक की इच्छा भी स्वाभाविक रूप से सरकारी नौकरी वाला दामाद की होगी इसमें कोई दो राय नहीं होना चाहिए। छतिसगढ़ राज्य सरकार की आंकड़ों पर नजर डालें तो राज्य में ज्यादातर युवा सरकारी नौकरीपेशा है। राज्य में बेरोजगारों की नहीं के बराबर है अतः विवाह योग्य युवतियों को अपने भावी जीवन को लेकर चिंता करने की आवश्यकता नहीं होनी चाहिए, लेकिन ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में रहने वाले ज्यादातर गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के विवाह योग्य युवको की हालत खराब है। बताया जा रहा है कि राज्य के ग्रामीण अंचल क्षेत्रों के बेरोजगार युवाओं को विवाह योग्य युवती नहीं मिल रही है। विवाह के लिए युवाओं के परिजन जिस युवती को देखने जा रहे हैं वहां पर एक ही सवाल किया जा रहा है लड़का नौकरी में हैं या नहीं ? यदि नहीं तो बात खत्म पतली गली की रास्ता नापो। विवाह योग्य युवक-युवतियों की इन परेशानियों को देखकर छत्तिसगढ़ सरकार की बेरोजगारी से संबंधित विषयों पर आकंड़े की पोल खुल रहा है।