TOPBHARAT -DESK : आज की मौजूदा दौर में कांग्रेस पार्टी देश के सबसे पुराना पार्टी होने के साथ साथ सबसे ज्यादा खराब स्थिति में खड़े नजर आने वाली पार्टी के तौर पर देखा जा राहा है। इससे पहले पार्टी के अंदर मौजूद रहे नेताओं ने पार्टी नेतृत्व पर बार बार सवाल उठा कर पार्टी में नेतृत्व करने वाले लोगों की नेतृत्व करने की इच्छा पर पानी फेर रखा है। लिहाजा कांग्रेस पार्टी की अध्यक्ष पद को लेकर गांधी परिवार भी अब दूरी बनाए रखने में भलाई समझ राहा है। अतः कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष पद को लेकर जल्द चुनाव करने जा रही है जिसके लिए दो नाम मुख्य रूप से सामने आये है। कांग्रेस नेता शशि थरूर और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत।
चूंकि संगठन, सन्गठन है। इसमे चालाकी, बदमाशी, ठगी, झूठ, पैसा, धमकी, लालच, पद, प्रतिष्ठा देकर सभी अंगों में सन्तुलन, सक्रियता और दिशा मेन्टेन रखनी होती है। अतः शशि थरूर और अशोक गहलोत के लिए इन तमाम राजनीतिक प्रपंचों में महारत हासिल करना जरूरी है।
कांग्रेस के लिए अभी पार्टी की सरकारे बचानी है,क्योंकि आपरेशन लोटस्ट का दौर अभी थमा नहीं है। और हो सके, तो एक दो भाजपा सरकार गिराकर दिखानी है। ये कर दिया, तो कांग्रेस मुक्त भारत का नारा बुलंद करने वाले लोगों की सारी चाणक्यगिरी झड़ जाएगी,लेकिन यह कर पाने की क्षमता इन दोनों में मौजूद हैं यह एक बड़ा सवाल है।
चूंकि ऐसा करने हेतू न तो थरूर के अंदर गुण देखा गया है और न ही गहलोत में यह गुण है। यह सब करना उनको वैसे भी शोभा नहीं देगा। खास तौर पर कांग्रेस,जहाँ फिलहाल अपने नेताओं को एक तराजू में तौल कर आगामी लोकसभा चुनाव में सत्ता हासिल करने हेतू जुटी हुई है उस दौरान।
पोलिटिकल सर्कल में सीनियरिटी, पुराने सम्बंध का इतिहास, भीतरी सम्पर्क गहलोत को UPA के क्षत्रपों से मिलकर, दबकर, आगे बढ़कर समझौता करने का अवसर देता है।
राहुल का गांधी होना, उन्हें झुकने का रूम नही देता। थरूर की इंडियन पॉलिटिक्स में जूनियरटी भी उनकी वीकनेस है। सबसे बड़ी बात, ठगबाजी करके फंड का प्रबंध करना उन दोनों के बस का नही होगा।
बिन फंडिंग सब सून।
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देश चलाने को नेहरू, राजीव, अटल, चाहिए, सन्गठन को सुभाष, सरदार, कामराज औऱ अमित शाह।
सरकार और संगठन का फर्क समझिए। पोलिटीक्स और एडमिनिस्ट्रेशन का फर्क समझिए। भाजपा भी दोनों मिक्स नही करती। ( क्योकि वह सिर्फ पॉलिटिक्स करती है, एडमिनिस्ट्रेशन नही)
कांग्रेस को देश निर्माण करना है, तो दोनों अलग रखने ही होंगे। तो अगर कांग्रेस के चुनाव असल मे गहलोत-,थरूर इक्वेशन बनने वाला है, गहलोत पर दांव लगाना सही होगा।