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" कका जिंदा है रे " मुखिया के आगमन से पहले आवभगत की तैयारियों में जुटे बालोद जिला के मुखिया प्रेमी भक्त और भगत।

 विनोद नेताम             
बालोद :- सूब्बे के मुखिया जी विगत कई माह से सूब्बे के कोना कोना में घुमते फिरते छान मारते हुए देखे जा रहे हैं। ठीक उसी तरह जिस तरह से एक किसान खेत में फसल बोने से पहले खेत की चारों ओर छान मार कर जायजा लेता है,ताकि वह तय कर सके कि उनके खेत में धान बोना ठीक है या फिर धनियां बोना ठीक है। अब सामने सर पर चुनाव खड़ी हो तब खाली बैठे बैठे तूर्रा तो छोड़ा नहीं जा सकता है। यदि इन दिनों खाली बैठ कर तूर्रा छोड़ने की भूल की जायेगी तो यकिनन रूप से कांग्रेस मुक्त भारत अभियान की मुहिम को बल मिल सकता है। हालांकि कांग्रेस पार्टी इन दिनों भारत जोड़ो यात्रा के माध्यम से लोगों को जोड़ने के फिराक में लगी हुई है। लिहाजा मुखिया जी को सूब्बे के कोना छानने में ही भलाई है,वरणा आगे आने वाले विधानसभा चुनाव में जनता कंही मुखिया गिरी का पद डाक्टर साहब के पाले में ना सौंप दें। गौरतलब हो कि चुनाव नजदीक आते ही लगभग हर राजनीतिक दल के नेता आम जनता के मध्य आगामी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर बड़े उम्मीद लेकर जाते है कि जनता उन्हें चुनाव में चयन करेगी और उन्हें व उनके पार्टी के पक्ष में वोट करेगी। आखिरकार राजनीति में पूरा तामझाम वोट के खातिर ही तो किया जाता है। वैसे देखा जाए तो इससे पहले की सरकार यानी कि डाक्टर साहब ग्राम सुराज अभियान के जरिए लोगों से मेल मुलाकात करते रहे है। परिणाम स्वरूप उनकी सियासी पारी 15  साल तक बखूबी चली है। लगभग उसी अंदाज में आज के वर्तमान समय के इस दौर में मुखिया जी भी भेंटवार्ता मुलाकात कार्यक्रम के जरिए लोगों को लुभाने में लगे हुए हैं। मुखिया जी की यह भेंटवार्ता कार्यक्रम लगभग ग्राम सुराज अभियान के तर्ज पर जनता को पुनः परोसने की कवायद के तौर पर देखा जा रहा है। अलबत्ता मुखिया जी के इस कार्यक्रम को सूमेचे रूप में बेहतर दिखाने हेतू अनेकानेक उपाय किए जाने की खबर भी मिल रही है। अब अनेकानेक उपाय करने के पीछे क्या मंशा है अथवा अनेकानेक प्रयोजन करने की आवश्यकता क्यों आन पड़ी है? यह बताने की हमारे पाठकों को आवश्यकता नहीं है। चूंकि आगे आने वाले दिनों में चुनाव है ऐसे में आम जनता के मध्य मौजूदा मुखिया को अपनी छवि बेहतर दिखाना पड़ेगा ही भले अंदर कुछ भी हो,लेकिन आम जनता के मध्य बेहतर छवि बनाये रखने में ही चतुराई है। इसलिए तरह तरह के अनेकानेक उपाय को अंजाम दिए जाने का रिवाज भारतीय राजनीति में चलन के तौर पर मौजूद है। वंही एक और खास बात चुनावी रेवड़ीयां भी इस दौरान खूब परोसी जाती है। बहरहाल छत्तिसगढ़ राज्य के मुखिया जी प्रदेश के ज्यादातर जिलों में अपनी भेंटवार्ता कार्यक्रम को सफल तरीके से निभाने के बाद जल्द बालोद जिला के पावन धरा में पधारने वाले है। जिले में मुखिया के आगमन से पहले सारी तैयारियां एकदम से पूरी कर ली गई है। जिले के सभी कांग्रेसी नेता एकदम से मुखिया जी के नजरों में बेहतर बनने हेतू अपनी अपनी ओर से योजना बनाने में व्यस्त बताए जा रहे है। वंही जिला प्रशासन से जुड़े हुए तमाम आला अधिकारी प्रशासनिक भूल-चूक को बेहतर दिखाने हेतू इन दिनों कड़ी मशक्कत कर रहे हैं। मुखिया जी वैसे भी भेंटवार्ता मुलाकात कार्यक्रम के दौरान अधिकारियों और कर्मचारियों की लापरवाहीयो से संबंधित विषयों पर 440 वाट का झटका देते हुए देखे जा चुके है। अतः जिला प्रशासन के विभिन्न विभागों में पदस्थ 440 झटका के असली हितग्राहियों में हड़कंप मचना लाजमी है। ज्ञात हो कि अवैध सट्टा कारोबार और अवैध शराब बिक्री में बालोद जिले ने चारों दिशाओं में प्रसिद्ध हासिल कर रखा है। दिन ब दिन यह कारोबार जिले के अंदर गरीब और मध्यम परिवारो की मेहनत और पसीने की कमाई को चूस कर उन परिवारों को तहस-नहस करने में जुटी हुई है। जबकि शासन और प्रशासन छोटी- छोटी मछलियों को जाल में फंसाकर आम जनता के समाने उपस्थित करते हुए यह बताने कि कोशिश में लगी रहती है कि तलाब को गंदा करने वाले मछलियों का सफाया किया जा रहा है। लोगों की मानें तो मुखिया जी के जिला आगमन से पहले इस कारोबार से संबंधित दाग को छिपाने की कवायद को अंजाम दिया गया है। निश्चित रूप से मुखिया के शान में किसी भी प्रकार के बट्टा नहीं लगना चाहिए क्योंकि मुखिया के रूप में उनसे जो बन पड़ा वह जिम्मेदारी बखूबी निभाने का प्रयास अबतक किया है,लेकिन जिला में संचालित इन अवैध कार्यों की जिम्मेदारी भी मुखिया गिरी के दायरे में आता है।अतः नासूर बन चुकी इस काले कारोबार की जिम्मेदारी भी मुखिया जी के माथे ही गीना जायेगा। सूत्रों की मानें तो मुखिया जी इस बात को भंलिभांती से जानते है,कि इस अवैध कारोबार के तलाब में रहने वाले असली मगरमच्छ कौन है। चूंकि सामने चुनाव है उपर से मुखिया के बगल में मुखिया पद के दूसरा उम्मीदवार लाइन में उनके पद से हटने के इंतजार में बैठे हुए है। ऐसे में लोकलाज के भय से मुखिया जी असली मगरमच्छ के राज तक को सीने में दबाकर अंदर अंदर ही आंसू बहाने को मजबूर नजर आ रहे है। जिला के गांव कस्बों और शहरों में व्यापक पैमाने पर मौजूद अवैध कारोबार मुखिया के लिए आज के वर्तमान परिदृश्य में नाक का सवाल बना हुआ है। ऐसे में देखना यह है कि मुखिया जी के जिला आगमन के पश्चात यह कारोबार और कितना फलता और फूलता है।

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