1977 से पहले भी देश में गोदी मिडिया का वजूद था नहीं बताया है चलिए हम बताते है,बने रहे हमारे साथ !
'आजादी के बाद देश की सत्ता पर ज्यादातर कांग्रेसी नेताओं का बोलबाला था, इंदिरा गांधी के कार्यकाल के दौरान जनसम्पर्क विभाग द्वारा प्रोजेक्टर द्वारा 4'×3' की सफेद कपड़े वाली स्क्रीन पर नगरों की गलियों में और गाँवों के चौराहों पर रात के 7-8 बजे उपकार और पूरब और पश्चिम फिल्में दिखायी जाती थी जिनके एक दो गीतों में तिरंगे झंडे के साथ गाँधी और नेहरू का नाम अवश्य होता था। तब चूँकी आजादी नयी-नयी मिली थी तो इन नामों का जादू सिर चढ़ कर बोला करता था,जिधर देखो उधर इन विशेष नामों पर चर्चा का बाजार गर्म हुआ करती थी!
'हर सिनेमा हॉल में फिल्म आरंभ होने से पहले 15 मिनट की डाक्यूमेंट्री फिल्म दिखाना आवश्यक होता था जिनमें 14 मिनट और 50 सैकिंड के लिये नेहरू और इंदिरा गांधी के वीडियो उनके कारनामों सहित दिखाये जाते थे। इस सरकारी फरमान का पालन लगभग सभी सिनेमा हाल मालिक किया करते थे तो वंही सिनेमा हाल में सिनेमा देखने वाले दर्शक भी किया करते थे !
इन डाक्यूमेंट्री फिल्मों में लाल बहादुर शास्त्री को महज वायुयान से उतरते हुए केवल 5-10 सैकिंड के लिये ही दिखाया जाता था,तो सिनेमा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठता था। इस डाक्यूमेंट्री फिल्म में शास्त्री जी के जय जवान जय किसान के नारे को दिखाना तो दूर की बात है 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध में हुई विजय तो कभी दिखायी ही नहीं जाता था।
उन फिल्मों में भारतीय संविधान निर्माता भीम राव अंबेडकर को कभी एक बार भी नहीं दिखाया जाता था। जबकि सुभाष चन्द्र बोस,भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद जैसे अमर शहीदो का नाम तक शामिल नहीं किया जाता था!
उन दिनों स्कूलों और कॉलिजों में जो प्रतियोगिता कार्यक्रम होते थे या यूथ फेस्टिवल होते थे तो उनमें उन्हीं भाषणों, नाटकों इत्यादि को प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार मिलते थे जो कि नेहरू और इंदिरा गांधी के कारनामों का बखान किया करते थे।
हर 14 नवंबर को स्कूली बच्चों से 'चाचा' नेहरू जिंदाबाद के नारे लगवा कर और उन्हें 2-2 लड्डू बाँट कर स्कूल की छुट्टी कर दी जाती थी।
हर 30 जनवरी को प्रातःकाल 10 बजे नगरपालिका का भोंपू बजा करता था। तब सरकारी कार्यालयों, स्कूलों इत्यादि में हर किसी को मौन खड़े हो कर 'उसे' श्रद्धांजलि देना आवश्यक होता था।
सरकारी कृषि विभाग के खेतों में कीट नाशक दवाओं का छिड़काव करने वाले छोटे हेलीकॉप्टर नुमा हवाई जहाजों से कांग्रेस उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार के पर्चें फैंकना तो सामान्य बात थी। उन चुनावों के दौरान चुनाव आयोग छुट्टी ले कर नानी के यहाँ चला जाता था।
तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की रैलियों में सभी सरकारी कर्मचारियों की उपस्थिति आवश्यक होती थी और उनके अधिकारी उन रैलियों में हाजिरी रजिस्टर अपने साथ ले जाते थे और उपस्थित कर्मचारियों की हाजिरी लगाते थे। यदि कोई कर्मचारी किसी रैली में उपस्थित नहीं होता था तो बाद में उस पर कारवाई की जाती थी।
सोचा कि ये बातें नयी पीढ़ी को भी बता दी जाएँ,क्योंकि आज की नयी पीढ़ी भी गोदी मिडिया को लेकर इन दिनों काफी हलाकान है! वैसे देखा जाए तो गोदी मिडिया का वजूद इन दिनों हर जगह व्यापक पैमाने पर मौजूद है,जिसके चलते आज भी देश की सत्ता पर राज करने वाले लोग अपने हिसाब से डाक्यूमेंट्री फिल्म बना कर देश की आम जनता के समक्ष प्रस्तुत कर रहे है! 'गोदी मिडिया का स्वरूप लोकतंत्र के लिए कितना घातक है यह बताने कि आवश्यकता नहीं है,लेकिन जिस तरह से गोदी मिडिया सरकारो की पक्ष में काम कर रही है! उसे देखकर लगता है कि सरकारे गोदी मिडिया की स्वरूप से खुश हैं,वैसे पिछले दिनों छत्तिसगढ़ राज्य के बालोद जिला अंतर्गत गुरूर में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कार्यक्रम के दौरान भी गोदी मिडिया की जबदस्त स्वरूप लोगों को देखने को मिली है।