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कटते वृक्ष घटती जंगल ,बंजर भूमि बस कुछ दिनों के अंदर !

      अमित मंडावी 
  बालोद : जिला में एक समय हर तरफ हरियाली ही हरियाली नजर आती थी , लेकिन इंसानों के आधुनिकीकरण की चाह ने हमारे इस हरियाली को पुरी तरह से तहस नहस कर दिया है । परिणामस्वरूप जिला में लगातार पर्यावरण का दुष्प्रभाव देखने को इन दिनों मिल राहा है , जिसके बावजूद हरे वृक्षों की कटाई अंधाधुंध जारी है । जिला में आज से बीस वर्ष के मुकाबले आगे आने वाले बीस वर्षों को आज की वर्तमान परिदृश्य से जोड़कर देखा जाए तो अगले बीस वर्ष बाद जिला में  हरियाली का नाम निशान नहीं होगा ।हर वर्ष सरकार के माध्यम से करोड़ रुपए का वृक्षारोपण कार्य, जिसके बाद भी वृक्षों की संख्या में लगातार गिरावट शासन और प्रशासन से जुड़े हुए जिम्मेदार लोगों के लिए चिंतन का विषय होना चाहिए । जिम्मेदार यदि समय पर इस विषय पर चिंतन करें तो जिला को पुनः हरियाली के रूप में तब्दील किया जा सकता है , लेकिन प्रशासनिक अकर्मण्यता के चलते जिला में वृक्षों की कटाई  पर्यावरण को प्रभावित कर रही है ।   पेड़ों के कटने से पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है, इसकी वजह से जैव विविधता की स्थिति लगातार खराब होती जा रही है। दुर्लभ जीव-जन्तु विलुप्ति के कगार पर पहुंच चुके हैं। लिहाजा, पर्यावरण को सहेजने के लिए वृक्षों को बचाना होगा।

विकास की बयार में औद्योगिकरण तेजी से बढ़ रहा है। उद्योगों का बढ़ता यही दायरा प्रदूषण के लिए जिम्मेदार है। दरअसल, वृक्षों के कटान सीधे पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इससे ग्लोबल वार्मिंग जैसी समस्या बढ़ती जा रही है, जिसका सीधा असर मौसम पर दिखाई दे रहा है। बेमौसम बरसात और सर्दी के दिनों में गर्म होते मौसम से साफ है कि यदि पर्यावरण के प्रति सचेत नहीं हुए तो परिणाम और भी भयावह होंगे। यही नहीं कम होते पेड़ों का असर जैव विविधता पर भी साफ दिखाई दे रहा है। हर 10 साल में स्तनधारी जीव जंतुओं की एक श्रेणी विलुप्त हो जाती है। जमीन कमजोर हो रही है। कहीं जलस्तर गिरने की समस्या है तो कहीं बंजर होती जमीन। रासायनिक प्रयोगों ने किसानों की फसलों को जहरीला बना दिया है। यही नहीं उद्योगों से निकलने वाले दूषित पानी से भी जमीन की ताकत गुम होती जा रही है। पॉलीथीन, प्लास्टिक जैसी वस्तुओं से भी जैव विविधता बिगड़ रही है। ऐसे में यदि पर्यावरण को बचाने के लिए जमीनी स्तर पर कार्य नहीं हुए तो जीवन भी खतरे में पड़ जाएगा। लिहाजा, समाज के हर व्यक्ति को वृक्षों को काटने से बचना होगा। साथ ही पौधारोपण के प्रति ध्यान देना होगा, ताकि पर्यावरण को संतुलित स्तर पर लाया जा सके। लोगों को ऐसे पौधे लगाने होंगे, जो ऑक्सीजन फ्रेंडली हों। मसलन, पीपल, अर्जुन, बबूल, शीशम आदि ऐसे वृक्ष हैं, जिससे पर्यावरण पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। धरती की जैव विविधता को वसुधैव कुटुम्बकम, जियो और जीने दो, जैसी सीख पर चलकर संरक्षित किया जा सकता है। इससे ही प्रकृति, पेड़-पौधे, जीव-जंतु और मनुष्य के बीच सामंजस्य बनाया जा सकता है!हर साल जिला में सैकड़ों वृक्षों की बलिदान अवैध वृक्षों की कटाई के विषय में ज्यादातर जिम्मेदार अनिभिज्ञ है, जिसके चलते जिला में हरे वृक्षों की अंधाधुंध कटाई लगातार जारी है !

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