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आदीवासियों से देश के ज्यादातर राजनीतिक दल दुरी बनाने में जुटी !

   रायपुर : 10 जून को देश के ऊपरी सदन यानी कि राज्यसभा के सांसदो का चुनाव सम्पन्न होना है , जिसके लिए नांमाकन की प्रक्रिया में तेजी देखी जा रही है ।आज के वर्तमान परिदृश्य में देश के ज्यादातर आदीवासी बाहूल्य राज्य जिसमें मध्यप्रदेश , छत्तीसगढ़ , और राजस्थान शामिल है जंहा से देश के बड़े राजनीतिक दलों ने एक भी आदीवासी समुदाय से जुड़े हुए स्थानीय आदीवासी नेताओ को राज्यसभा में  नहीं भेजने का फैसला किया  है । जबकि यह सभी राज्य आदीवासी बाहूल्य राज्य है ,जहां से आदीवासीयो का भी राज्यसभा में प्रतिनिधित्व रहना अति आवश्यक, है क्योंकि दोनों सदन महत्वपूर्ण माना जाता है । राज्य सभा दोनों सदनों में सबसे उच्च सदन माना जाता है , जंहा पर आदीवासी समुदाय से जुड़े हुए लोगों का प्रतिनिधित्व बहुत जरूरी है , जबकि इन राज्यों से गैर आदिवासियों को राज्यसभा में भेजने का प्रकिया वर्षों से अनवरत जारी है । निश्चित तौर पर आदीवासी समुदाय से जुड़े हुए लोगों के लिए राजनीतिक दलों के द्वारा किया जाने वाला यह कृत्य मुंह में राम और बगल में छुरी वाली कहावत को चरितार्थ करने जैसी है । देश के बड़े राजनीतिक दलों के नेता अक्सर आदीवासियों के मध्य सीना चौड़ी करके डिंगे हांकते हुए कहते है , कि आदीवासी समुदाय का पिछड़ापन का कारण है आदीवासियों को नेतृत्व से दूर रखने की साज़िश  , लेकिन जब नेतृत्व की जिम्मेदारियों का भार सौंपने की बारी आती है ,तब ज्यादातर राजनीतिक दल अपनी राजनीतिक फायदा ज्यादा देखते हैं। जबकि आदीवासी समुदाय से जुड़े हुए लोगों को नेतृत्व के अधिकार से वंचित कर दिया जाता है । आदीवासी समाज देश के अनुसूचित जनजाति की क्षेणी में शामिल एक मूल निवासी जाती है ,जो देश के राजस्थान , मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ राज्य में बहुसंख्यक के रूप में निवासरत हैं । देश के उच्च सदन राज्यसभा में इन तमाम राज्यो में निवासरत आदीवासीयो के मध्य में रहने वाले सांसदों की सीधे तौर पर कमी है ,जो कि एक बड़ी चिंता का विषय है । इन सभी राज्यों से  आदीवासी समाज से जुड़े हुए सांसदों की संख्या राज्यसभा में कम होने के लिए ना सिर्फ राजनीतिक दल जिम्मेदार है अपितु आदीवासी समाज की खामोशी भी एक बड़ा कारण है । आदीवासी समुदाय के विकास हेतू स्थानीय आदिवासी नागरिकों  को राजनीतिक क्षेत्रों में भी कदम तेजी से बढ़ना होगा ताकी गरीब और पिछड़ेपन का शिकार आदीवासी समाज के साथ वे सही मायने में विकास कि परिभाषा को निभा सके , जिसके चलते इन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासियों का दैनिक दिनचर्या में तेजी के साथ बदलाव लाया जा सके । ज्यादातर आदीवासी समाज से जुड़े हुए युवा पीढ़ी आधुनिकता के चकाचौंध और राजनीतिक विचारधाराओ के चलते आदीवासी समाज की समाजिक गतिविधियों से कोसो दूर हो रहे है , जबकि इन राज्यों के आदीवासी बाहूल्य क्षेत्र के स्थानीय नेता राजनीतिक उपेक्षा का शिकार हो कर दिनों दिन हासिए पर जा रहे हैं। लिहाजा आदीवासी समाज से जुड़े हुए गरीब आदिवासी परिवारों को जमीन से जुड़े हुए नेताओं की कमी साफ झलक रही है, जिसके आदीवासियों का लगातार शोषण हो रहा है , जिसके तरफ झांकने वाला तक नहीं ,जो कि चिंतन का विषय है । छत्तीसगढ़ राज्य अंतर्गत प्रदेश में निवासरत आदीवासी समुदाय प्रदेश के ज्यादातर राजनीतिक दलों से नाखुश हैं , तो वंही यही हाल मध्यप्रदेश और राजस्थान में भी है । छत्तीसगढ़ राज्य में इस वक्त अधिकांश क्षेत्रों के आदीवासी समुदाय से जुड़े हुए लोग आंदोलनरत हैं । जिन आंदोलनों में सिलेगर ,एड़समेटा , और हसदेव अरण्य अभ्यारण शामिल है । प्रदेश के मौजूदा सरकार आंदोलनरत आदिवासियों की दुखती रग में मरहम लगा कर खत्म करने के बदले खामोश हो कर तमाशबीन बनी है ।

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