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छतिसगढ़ीहा बनाम गैर छत्तिसगढ़ीहा !

          
विनोद नेताम ✍️
  बालोद : छत्तीसगढ़ राज्य जंहा की प्राकृतिक सुंदरता एवं यंहा पर बसने वाले बांशिदो की मुंख में मिठास भरी व्यवहार सबका दिल बड़े आसानी से जीत लेता है । भारत भुईया के बेटी के रूप में विख्यात छत्तीसगढ़ महतारी के लगभग ढाई करोड़ करिया बेटा बेटी होने की बात कही जाती है , जिसमें ज्यादातर जनसंख्या आदीवासी समुदाय से जुड़े हुए लोगों की है , तो वंही राज्य में पिछड़ा वर्ग की जनसंख्या भी बहुतायत है । कुल मिलाकर सभी दृष्टिकोण से वैसे देखा जाए तो छत्तिसगढ़ राज्य बिलकुल वैसा ही है जैसा कि पूर्व मुख्यमंत्री स्व अजित जोगी साहब ने राज्य की परिभाषा अमिर धरती के गरीब लोग ,यह कहते हुए कही थी । निश्चित तौर पर पूर्व मुख्यमंत्री स्व अजित जोगी साहब के द्वारा कही गई बात कंही ना कंही , किसी ना किसी रूप में फिट बैठती होगी जिसके चलते पूर्व मुख्यमंत्री ने यह बात कही होगी । छत्तीसगढ़ राज्य शुरू से ही उपेक्षा का शिकार हुआ है , परिणामस्वरूप यंहा के बाशिंदों को उनकी मौलिक अधिकार समय पर उपलब्ध नही हो सका फलस्वरूप यंहा के बाशिंदे जीवन के लगभग सभी स्तर पर अन्य राज्यों के नागरिकों के मुकाबले पिछड़ गए । शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधा का ना होना किसी भी राष्ट्र के लिए जहर पिला कर हत्या कर देने की बराबर मानी जाती है , लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य ने यह सब अपने खुले आंख से देखा है और आज भी बड़ी आसानी से देखा जा सकता है बस नियत और विचार नेक होनी चाहिए । छत्तीसगढ़ राज्य प्राकृतिक दृष्टिकोण से लबालब भरी हुई एक खजाना है , यंहा की भूमि के अंदर अनेक खनिज तत्व की प्रचुर भंडार है , और यही भंडार छत्तिसगढ़ राज्य के बाशिंदों की जी का जंजाल बना हुआ है , क्योंकि इस खनिज को लुटने हेतू लगातार लुटेरे किसी ना किसी रूप में आकर अकूत खजाना को दिन रात लुट रहे है। छत्तीसगढ़ की भूमि से निकाली गई खनिज के कारण राज्य में बड़ी बड़ी कंपनिया और बड़े बड़े कारखाना लगाये गए हैं , जिसमें राज्य के लोगों को रोजगार मिला हुआ है , लेकिन खनिज उत्खनन क्षेत्र में विकास के नाम पर दिया गया जख्म विनास की तौर पर उभर रही है ,जो एक बड़ी चिंता का कारण है । राज्य में छत्तिसगढ़ के आम बांशिदो के मुकाबले गैर छत्तिसगढ़ीहा लोगों का विकास चरम पर ,गैर छत्तिसगढ़ीहा लोग रोजाना राज्य के गरीबों की जमीन को पानी की मोल खरीद कर मालामाल हो रहे है ,जबकि आम छतिसगढ़ीहा एक एक पाई पाई को जमा करने हेतू तरस रहा है । क्षेत्रवाद पर राज्य के नेताओं की ज्यादातर समय पर बोलती बंद रहती है , क्योंकि राज्य के अंदर मौजूद सभी राजनीतिक दलों में गैर छत्तिसगढ़ीहा नेताओं की भरमार है । राजनीतिक दलों में भी स्थानीय नेताओं की गैर छत्तिसगढ़ीहा नेताओं के मुकाबले बोलबाला कम , जिसके चलते स्थानीय और ग्रामीण अंचल क्षेत्रों में विकास की रफ्तार अनुमान से कम है   , जिसके चलते छत्तिसगढ़ राज्य का फैसला राजधानी रायपुर में बैठ कर नही लिया जाता है बल्कि देश के राजधानी दिल्ली में बैठकर लिया जाता है ।अब देखना यह है कि आगे आने वाले दिनों में छत्तिसगढ़ राज्य में क्षेत्रवाद, भाषावाद, और छतिसगढ़ीहा वाद को लेकर कोई संगठन मजबूती से खड़ा होता है या नही ।

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