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आदिवासीयों के ज्वलंत मुद्दे जो विश्व आदिवासी दिवस 9 अगस्त 2021 अवसर पर पूरे प्रदेश सहित देश के विभिन्न हिस्सों में प्रमुखता से रखा जावेगा


आओ जाने विश्व आदिवासी दिवस क्या है..
     द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद पूरे विश्व में शांति स्थापना के साथ साथ विश्व के देशों में पारंपरिक, मैत्रीपूर्ण संबंध मनाते हुए एक-दूसरे के अधिकार एवं स्वतंत्रता को सम्मान करने ,विश्व में शिक्षा एवं स्वास्थ्य के विकास को बढ़ाने ,मानव अधिकार की रक्षा करने ,गरीबी उन्मूलन जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को लेकर 24 अक्टूबर 1945 को पूरे विश्व के सबसे बड़े पंचायत संयुक्त राष्ट्र संघ का गठन किया गया। जिसमें अमेरिका ,रूस ,चीन, फ्रांस, ब्रिटेन ,भारत सहित वर्तमान में 193 देश सदस्य हैं ।वर्ष 1994 में अपने गठन के 50 वर्ष बाद संयुक्त राष्ट्र संघ में यह महसूस किया की 21वीं सदी में भी विश्व के विभिन्न देशों में निवासरत जनजाति, मूलनिवासी, आदिवासी समाज अपनी  उपेक्षा, गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ्य सुविधा का अभाव, सरकार के बड़े उद्योग एवं सिंचाई बांध के कारण विस्थापन, बेरोजगारी एवं बंधुआ मजदूर जैसे समस्याओं से ग्रसित है ।जनजातीय समाज के उक्त समस्याओं के निराकरण हेतु विश्व का ध्यानाकर्षण के लिए वर्ष 1994 में संयुक्त राष्ट्र संघ के महासभा द्वारा प्रतिवर्ष 9 अगस्त को (इंटरनेशनल डे ऑफ वर्ल्ड इंडिजिनियस प्यूपिल)  विश्व आदिवासी दिवस मनाने का फैसला लिया गया। इसके बाद से पूरे विश्व में जैसे उत्तर एवं दक्षिण अमेरिका महाद्वीप ,अफ्रीका महाद्वीप तथा एशिया महाद्वीप के आदिवासी बहुल देशों में 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के रूप में बड़े जोर-शोर से मनाया जाता है  जिसमें भारत भी प्रमुखता से शामिल है ।आज भारत के मूलनिवासी आदिवासी समाज भी विश्व आदिवासी दिवस के अवसर पर अपने संवैधानिक अधिकारों का समीक्षा कर रहा है भारत के संविधान में अनुच्छेद 14 ,15(4)16( 3 )16(4) 19( 1 )(घ)( ङ)23 ,243 (य‌)(ग)244 (1)(5 )275, 330 ,333 ,342, 388 ,छत्तीसगढ़ भू राजस्व संहिता 165 एवं 170 ( ख) छत्तीसगढ़ को -ऑपरेटिव सोसायटी एक्ट 1960 की धारा 48 के कंडिका 2 का तथा पांचवी अनुसूची में अनुसूचित जनजातियों के राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक तथा शैक्षणिक विकास के पर्याप्त प्रावधान होने के बावजूद आदिवासियों का विकास क्यों नहीं हो रहा है। आज पूरे भारत के आदिवासी क्षेत्रों में जहां सविधान के पांचवी एवं छठवीं अनुसूची लागू है वह अशान्त क्यों है ? वही नक्सलवाद क्यों है ? क्या ऐसी आदिवासी विरोधी वर्तमान व्यवस्था में आदिवासियों की स्थिति सुधरेगी ।जहां :---

 01. संयुक्त राष्ट्र संघ में आयोजित बैठक में आदिवासियों की समस्याओं के चर्चा के लिए भारत के प्रतिनिधि के रूप में गैर आदिवासी लोग जाते हैं । जो आदिवासियों की समस्याओं के बारे में जानते भी नहीं है ।

02. संविधान के 19 (1 )(घ)(ङ) में अनुसूचित जनजाति के हितों के संरक्षण के लिए युक्ति-युक्त निर्बधन, जहां तक कोई विद्ममान विधि अधिरोपित करती है वहां तक उसके प्रवर्तन पर प्रभाव नहीं डालेगी या वैसे निर्बंधन अधिरोपित करने वाली कोई भी विधि बनाने से राज्य को निवारित नहीं करेगी ,का  -प्रावधान है लेकिन भारत के 28 राज्य 9 केंद्र शासित प्रदेशों में आज दिनांक तक इस संबंध में कानून नहीं बनाया गया है।

03 .भारत में अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत विस्तार अधिनियम 1996 बनाया गया है जिसे पेसा कानून कहा जाता है इसमें अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम पंचायतों एवं ग्राम सभा को जल, जंगल ,जमीन से संबंधित विषयों पर निर्णय लेने का अधिकार देने का प्रावधान है, लेकिन आज दिनांक तक इस कानून का क्रियान्वयन नहीं किया गया है ।

04 . वर्ष 2006 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय जनजाति नीति 2006 का प्रारूप तैयार किया गया है जिसे आज तक 18 साल बाद भी संसद में पेश नहीं किया गया।

05. अनुसूचित क्षेत्रों में बगैर ग्रामसभा के अनुमोदन के भूमि अधिग्रहण कर कोयला ,लोहा ,बॉक्साइट, चूना पत्थर  इत्यादि कच्चा माल खदानों से निकाला जा रहा है और इन मिनरलो का 25% रॉयल्टी प्रभावित आदिवासी परिवारों को नहीं दिया जा रहा है।

 06 .भू राजस्व की धारा 170 (ख) के तहत आदिवासी अपनी खोई हुई जमीन का केस जीत तो जाता है लेकिन प्रशासन पर राजनीतिक दबाव के कारण उसे वास्तविक कब्जा नहीं मिल पाता। साथ ही इन प्रकरणों को राजस्व मंडल एवं उच्च न्यायालय में उलझा दिया जाता है ,परंतु राज्य सरकार के द्वारा इन प्रकरणों में आदिवासी वर्ग का प्रतिरक्षण नहीं किया जाता है ।

07 .वर्ष 2011 के जनगणना में आदिवासियों की जनसंख्या अन्य समाज की तुलना में कम हो गई जबकि सारे जहां की जनसंख्या वृद्धि हो रही है ।

08. राष्ट्रपति सचिवालय ,उप राष्ट्रपति सचिवालय, प्रधानमंत्री कार्यालय में कोई भी आदिवासी पदस्थ नहीं किया जाता है ।

09 .भारत के सुप्रीम कोर्ट में एक भी आदिवासी न्यायाधीश नहीं है।

10. भारत के योजना आयोग में एक भी आदिवासी सदस्य नहीं है।

11. भारत के 28 राज्यों एवं 9 केंद्र शासित प्रदेशों में केवल छत्तीसगढ , झारखंड प्रदेश को छोड़कर एक भी आदिवासी राज्यपाल नहीं है ।

12 .भारत के पूर्वोत्तर राज्यों को छोड़कर शेष उत्तर भारत ,मध्य एवं दक्षिण भारत के एक भी राज्यों में आदिवासी मुख्यमंत्री नहीं है।

 13. भारत के एक भी राज्य में आदिवासी समुदाय के मुख्य सचिव या पुलिस महानिदेशक नहीं है !

14. छत्तीसगढ़ एवं भारत के उच्च न्यायालयों में आदिवासी न्यायाधीश नहीं हैं ।

15 .छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में आदिवासियों से संबंधित प्रकरणों/ याचिकाओं के सुनवाई के बाद अधिकांश निर्णय आदिवासियों के विरुद्ध में जा रहा है ।

16. छत्तीसगढ़ के केंद्रीय, राज्य एवं निजी क्षेत्र में स्थापित विश्वविद्यालयों में एक भी आदिवासी कुलसचिव नहीं है, और कुलपति नहीं है।

17. छत्तीसगढ़ में मीडिया समाचार पत्रों या टीवी समाचार चैनलों में एक भी आदिवासी पत्रकार नहीं है।

18.छोटे-छोटे राजस्व प्रकरणों में भी नायब तहसीलदार, तहसीलदार या एसडीएम  अपने कोर्ट में आदिवासियों को बार-बार पेसी बुलाकर परेशान किया जाता है तथा राजनीतिक दबाव में निर्णय आदिवासियों के खिलाफ में ही दिया जाता है ।

19 .छत्तीसगढ़ आदिवासी बाहुल्य प्रदेश है इसलिए आदिवासी समाज से जनजाति मामलों के जानकार को ही मुख्यमंत्री का सलाहकार नियुक्त किया जाए।

20. छत्तीसगढ़ में एक भी आदिवासी पीडब्ल्यूडी, इरीगेशन, पीएमजीएसवाई , में ए या बी ग्रेड का ठेकेदार कोयला, लोहा, चूना पत्थर, टीन इत्यादि के ठेकेदार, तेंदूपत्ता ,,इमारती लकड़ी या अन्य वनोपज के ठेकेदार या व्यापारी नहीं है।

21. छत्तीसगढ़ के उद्योग/ औद्योगिक क्षेत्र में आदिवासियों के पास एक फैक्ट्री नहीं है ।

22.छत्तीसगढ़ में ऐसा एक भी आदिवासी नहीं है जिनके पास तीन से अधिक ट्रक या बस हो।

23. छत्तीसगढ़ में जिस सामान्य विधानसभा क्षेत्रों में 35% से अधिक जनसंख्या आदिवासियों की है उन विधानसभा/लोकसभा क्षेत्रों में राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियां आदिवासी वर्ग को टिकट नहीं देती है जबकि कम जनसंख्या वाले गैर आदिवासी को आसानी से टिकट दे देती है इस तरह राष्ट्रीय राजनीतिक पार्टियां इन विधानसभा क्षेत्रों में आदिवासियों को राजनीति गुलाम बना दिया है।

24 .आदिवासी समाज के समर्थन में चुने हुए हमारे ही आदिवासी विधायक, सांसद एवं मंत्री गण अपने ही आदिवासी बंधुओं का विश्वास नहीं करते हुए गैर आदिवासियों को अपना पी.ए. यानी निज सहायक बनाते हैं या रखे हुए हैं ।

25 .वर्तमान सरकार के द्वारा भूमि अधिग्रहण, नजूल भूमि को विक्रय किया जा रहा है जो अनुसूचित क्षेत्रों में विधि के विपरीत है इस को तत्काल रोक लगाया जाए ।

26. फर्जी जाति प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी करने वालों को तत्काल सेवा से बर्खास्त कर उनके खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही हो।
फर्जी जाति प्रमाण पत्र धारियों   को  जिला प्रमुख एवं अन्य महत्वपूर्ण पदो से तत्काल हटाने राज्य शासन के आदेश का पालन करवाई जावे।
न्यायालय से स्थगन हटाने विधि विभाग से समीक्षा करवाने पैरवी के लिये वरिष्ठ अधिवक्ताओं , विधि अधिकारियों की समिति गठित कर सुप्रीम कोर्ट के न्याय दृष्टांतों के आधार पर स्थगन हटवाने महाधिवक्ता को निर्देश दिया जावे।
सभी विभाग में आरक्षण की मानिटरिंग हेतु स्थाई समिति एवं नोडल अधिकारी की नियुक्ति हो। राज्य सरकार द्वारा फर्जी जाति प्रमाण पत्र धारी शासकीय सेवकों को मुख्यमंत्री के घोषणा के बाद भी विगत 2 साल से कोई कार्यवाही नहीं किया जाना मुख्यमंत्री के वादाखिलाफी है तत्काल इस पर कार्यवाही किया जाए।

27 .छत्तीसगढ़ में संचालित स्वामी आत्मानंद उत्कृष्ट अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में शिक्षक व कर्मचारी के लगभग 12000 पदों की भर्ती में स्कूल शिक्षा विभाग के भर्ती नियम 2019, संविदा नियम 2012 के तहत व्याख्याता की संचालक लोक शिक्षण व शिक्षक की संयुक्त संचालक स्तर से भर्ती किया जाकर राज्य/ संभाग/ जिला स्तर का आरक्षण नियम का पालन किया जावे। जिससे अनुसूचित जाति ,जनजाति वर्ग के योग्य बेरोजगार  युवाओं को रोजगार के अवसर मिल सके।

28. अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार अधिनियम का प्रभावी क्रियान्वयन को मानीटर करने राज्य संरक्षण कक्ष की स्थापना किया जावे।
 अनुसूचित जाति जनजाति अत्याचार के प्रकरणों मे  अन्य राज्यों की तरह नियमित संवर्ग के वरिष्ठ अभियोजन अधिकारियों से पैरवी करवाकर  पीड़ितों को शीघ्र न्याय दिलाई जावे ।

29 .छत्तीसगढ़ के विभिन्न विभागों में पदोन्नति आरक्षण नियम की धज्जियां उड़ाते हुए हाईकोर्ट के आदेश की गलत व्याख्या करके नियम विरुद्ध कोरोना काल में हजारों की तादाद में असंवैधानिक पदोन्नति की गई है। जिससे आदिवासी समाज एवं अनुसूचित जाति वर्ग के अधिकारी / कर्मचारी पदोन्नति से वंचित हो रहे हैं ।इस संबंध में जब तक माननीय उच्च न्यायालय में स्थगन समाप्त नहीं हो जाता तब तक किसी भी हालत में अनुसूचित जाति/ जनजाति के लिए आरक्षित रिक्त पदों को नहीं भरे जाने, उसे सुरक्षित रखे जाने और जितने सामान्य वर्ग के कर्मचारी अनुसूचित जाति/जनजाति के लिए आरक्षित पदों पर नियम विरुद्ध पदोन्नत हुए हैं उसे तत्काल पदानवत किया जाकर  पदोन्नति नियम 2003 एवं आरक्षण अधिनियम 1994 की धारा 06 नियम 1998 एवं समय-समय पर जारी  निर्देशों का उलंघन कर नियम विरुध्द पदोन्नति देने वाले अधिकारियों के खिलाफ  अनुशासनात्मक कार्यवाही एवं धारा 6 आरक्षण अधिनियम 1994 के तहत दंडात्मक कार्यवाही  किये जाने के साथ आरक्षण बहाली हेतु विधानसभा मानसून सत्र में विधेयक पारित किया जावे।
ज्ञात हो वर्ष 2019 में हाईकोर्ट ने अपने निर्णय के अनुसार  छत्तीसगढ़ पदोन्नति अधिनियम 2003 के बिंदु क्र 5 को स्थगित किया। पदोन्नति नियम 2003 को रद्द नहीं किया है।

 जिसमें  अनुसूचित जनजाति के 32%और  अनुसूचित जाति के 12% आरक्षण का प्रावधान है।और राज्य शासन को निर्देशित किया कि राज्य में अनुसूचित जाति, जनजाति को प्रतिनिधित्व के आधार पर पदोन्नति सुनिश्चित करें।जिसमे ऍम नागराज एवं जनरैल सिंह के फैसले का परिपालन हो। हाईकोर्ट द्वारा  नियमानुसार पदोन्नति  दिए जाने की बात कही गई है । लेकिन  छत्तीसगढ़ के विभिन्न विभागों में अपने अपने विवेक से वरिष्ठता के आधार पर बिना आरक्षण रोस्टर का पालन किए..रोस्टर से भरे जाने वाले पदों को भी सामान्य वर्ग से पदोन्नति देकर भर रहे हैं। जिसके कारण आरक्षण की अवधारणा ही खत्म हो गया है। …….
 छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल के अधिकारी इससे एक कदम आगे बढ़कर  पदोन्नति के लिए अपने स्वयं से नियम पारित कर 50-50%वरिष्ठता  के आधार पर पदोन्नति दे रहे है।  इन अधिकारियों को मालूम है कि पावर कंपनी में टॉप के सभी कैडरों चीफ इंजीनियर , सुपरिंटेंडेंट इंजीनियर में  अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के अधिकारी वरिष्ठ है और इस पदोन्नति से  टॉपमोस्ट पदों पर  अनुसूचित जाति/ अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों का प्रभुत्व हो जायेगा। ऐसा सोचकर पावर कंपनी के संचालक मण्डल ने 50-50% का फार्मूला अपनाया है।  उपरोक्त  फार्मूला के अनुसार  अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के वरिष्ठ लोगों को 50% पद मिला और 50%पद पर सामान्य लोग आ गए। जबकि उक्त स्थान पर वरिष्ठता के आधार पर अनुसूचित जाति/ अनुसूचित के अधिकारी पदोन्नत होते..
इसके अतिरिक्त  बैकलॉग के पदों पर सामान्य वर्ग के लोगों को पदोन्नति प्रदान किया जा रहा है। जिससे अनुसूचित वर्ग के विशेष कर  अनुसूचित जनजाति वर्ग के लोगों को बहुत नुकसान हो रहा है।
 इसलिए पदोन्नति में आरक्षण के संबंध में जब तक माननीय न्यायालय में स्थगन समाप्त नहीं हो जाता तब तक किसी भी हालत में अनुसूचित जाति/ जनजाति के लिए आरक्षित रिक्त पदों को नहीं भरा जाए उसे सुरक्षित रखा जावे और जितने सामान्य वर्ग के कर्मचारी अनुसूचित जाति जनजाति के लिए आरक्षित पदों पर नियम विरुद्ध पदोन्नत हुए हैं उसे तत्काल पदानवत किया जावे और कई महीनों से लंबित शासन द्वारा पदोन्नति के लिए बनाई गई पिंगुआ कमेटी की रिपोर्ट के साथ अपना पक्ष हाईकोर्ट में अविलम्ब  प्रस्तुत करवाया जावे।

30. छात्रवासों,आश्रमों स्कुलों को पूर्व की तरह आदिम जाति अनु.जाति कल्याण विभाग में पूर्व की तरह शिक्षा विभाग से अलग किया जावे।

31. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के बैकलाग पदों की जानकारी सभी विभागों को देने व रिक्त पदों को भरने विशेष भर्ती अभियान  प्रारंभ किया जावे।

32.बोधघाट परियोजना का पुनः प्रारंभ करना आदिवासी संस्कृति रुढी ,परंपरा ,रीति रिवाज के विपरीत होने के साथ ही आदिवासियों का विस्थापन का एक नया तरीका ईजाद किया जा रहा है ।

33.सलवा जुडूम से विस्थापित आदिवासियों को एक कमेटी बनाकर तत्काल सीमांत प्रदेशों से वापस लाकर बासाया जाए ।

34. जेल में बंद निर्दोष आदिवासियों को तत्काल रिहा किया जाए ।

35. अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के विद्यार्थियों के लिए स्कॉलरशिप हेतु निर्धारित ढाई लाख की आय सीमा की बाध्यता मध्य प्रदेश की भांति यहां भी समाप्त किया जावे।

36. जनजाति सलाहकार परिषद का अध्यक्ष ,परिषद के सदस्यों में से ही नियुक्त किया जाए ।

37. अनुसूचित जनजाति वर्ग के  कई अधिकारी कर्मचारी निलंबित हैं इन्हें बिना दंड दिए विभागीय जांच प्रकरणों को प्रशासकीय विभाग द्वारा स्वयं के स्तर से ही समाप्त किए जाएं।अनुसूचित जनजाति वर्ग के अधिकारी कर्मचारीयों के विभागीय जांच,निलंबन,अपराधिक प्रकरणों के शीघ्र निराकरण किया जावे।
38. बस्तर के सिलगेर में पुलिस फोर्स द्वारा मारे गए निर्दोष आदिवासियों के परिवार को त्वरित न्याय मिले। निर्दोष निहत्थे आदिवासियों के हत्या करने वाले पुलिस फोर्स के खिलाफ दंडात्मक कार्यवाही हो।

यह मांग पत्र 9 अगस्त विश्व आदिवासी दिवस 2021 अवसर पर समाज के तरफ से पंचायत , ब्लॉक ,तहसील , जिला तथा प्रदेश स्तर पर महामहिम राष्ट्रपति महोदय एवं माननीय प्रधानमंत्री महोदय, महामहिम राज्यपाल महोदय एवं माननीय मुख्यमंत्री महोदय को ज्ञापन भेजा जावे ।

 

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