रामधारी सिंह दिनकर कलम की ताकत बताते हुए लिखते हैं -
दो में से क्या तुम्हें चाहिए कलम या कि तलवार
मन में ऊंचे भाव कि तन में शक्ति विजय अपार
कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली
दिल की नहीं दिमाग में भी आग लगाने वाली
लेकिन आपको न्यूज़क्लिक याद है? आरोप लगाया गया था कि यह संस्थान देशद्रोही गतिविधियों में लिप्त है। चीन से फंडिंग लेता है। वगैरह वगैरह... इसके संपादक प्रबीर पुरकायस्थ को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया गया। न्यूजक्लिक लगभग बंद हो गया। दर्जनों पत्रकारों के यहां छापा पड़ा। उन सभी के लिए उस बख्त जीविका का संकट खड़ा हो गया। अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रबीर पुरकायस्थ की गिरफ़्तारी अवैध है और उनको बिना शर्त रिहा किया जाए। 14 मई को कोर्ट के इस आदेश पर ज्यादा चर्चा नहीं हुई क्योंकि माहौल अलग था। जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने कहा कि पुरकायस्थ की गिरफ़्तारी और उसके बाद उन्हें हिरासत में रखना क़ानून की नज़र में अवैध है। पुरकायस्थ की गिरफ़्तारी के समय ये नहीं बताया गया कि इसका आधार क्या था। इसकी वजह से गिरफ़्तारी निरस्त की जाती है और पुरकायस्थ को बिना किसी शर्त के रिहा किया जाए। पुरकायस्थ बीते साल अक्तूबर से यूएपीए के तहत जेल में थे। इसी मामले में पत्रकार उर्मिलेश, प्रांजय गुहा, अभिसार शर्मा, अनिंद्यो चक्रवर्ती, भाषा सिंह और इतिहासकार सोहेल हाशमी समेत कई पत्रकारों के यहां छापा मारा गया था। हालांकि, अभी केस ट्रायल पर जाएगा, और अंतिम फैसला आना बाकी है। लेकिन पुरकायस्थ को रिहा करने का निर्णय बताता है कि कैसे बुनियादी प्रक्रियाओं का पालन किए बिना एक संस्थान पर कार्रवाई की गई ताकि उसे चुप कराया जा सके। न्यूजक्लिक पर जो आरोप लगाए गए, जिस तरह कार्रवाई हुई, उसी से साफ था कि पूरी प्रक्रिया दुर्भावना पूर्ण बदले की कार्रवाई थी। पूरा गोदी मीडिया भजन करता है लेकिन एक दो छोटे संस्थान चार छह लेख छाप देते हैं तो सरकार का सिंहासन डोलने लगता है।

लेकिन जरा सोचिए क्या देश के अंदर सत्ता में रहने वाली सरकारें संविधान में निहित अभिव्यक्ति की आजादी का पूर्ण रूप से सम्मान करती है? आज सच बोलने और लिखने वाले लोगों की कलम और जुबान सत्ता की हुनक के बलबूते जिस तरह से खुलेआम दबाई जा रही है क्या वह हमारी सभ्यता और संस्कृति के लिए सही है? यदि सही है तो नैतिक रूप से हमे विश्वगुरू कहलाने का जरा भी अधिकार नहीं है क्योंकि हम अपनी सच जानने, कहने और सुनने जैसी जिंदा होने प्रमाण को मूल प्रमाण को अपनी इन करतूतों से स्वत खत्म करने की दिशा में आगे बढ़ते हुए पगलाए मन से स्वंभू विश्वगुरु होने का तमगा लिए फिर रहे हैं,जबकि जमीनी धरातल पर मौजूद मंजर चिख चिख कर कुछ अलग ही माजरा का बखान कर रहा है। कुलमिलाकर कहा जाए तो पूरे देश भर में प्रेस की आजादी सफेद कागज पर लिपटी हुई काली स्याही है। जिस पर सफेद पोश नेताओं की ताकत और पैसा लगा हुआ है। छत्तीसगढ़ राज्य का नाम देश दुनिया में काफी विख्यात है। हालांकि विख्यात होने के पीछे कई कारण हैं। कुछ लोग छत्तिसगढ़ प्रदेश के इस उपजाऊ जमीन को धान की कटोरा के रूप में देखना चाहते हैं तो वंही कुछ लोग दुनिया के सबसे बड़े इस्पात संयंत्र को देखकर जल मर जाते हैं। बावजूद इसके कुछ लोग इस सरजमीं को नक्सलवाद के चपेट से तरबतर लाल भूमि के लिए भी पहचानते हैं। बता दें कि नक्सलवाद छत्तिसगढ़ प्रदेश की उपजाऊ जमीन पर न सिर्फ एक दंश है अपितु विकास के लिए भी एक बड़ी बाधा है। एक तरफ बंदूक की गोलियों का बौछौर और धड़ा धड़ नाल से निकलती हुई आवाज के बिच कलम की वो मजबूत ताकत भी इस धरती पर मजबूती के साथ स्थापित है। हालांकि छत्तीसगढ़ राज्य की सरजमीं पर काबिज रहने वाले ज्यादातर सरकारों की रहनुमाओं ने कलम की ताकत को तहस नहस करने और कहर बरपाने में कोई कसर बाकी नहीं छोड़ा है। बावजूद इसके इस सरजमीं की मिट्टी के खातिर अपनी लहू से सच्चाई को बंया करने वाले कई जांबाज कलम के सिपाहियों को आज भी अपने साथ हुये नाइंसाफी पर इंसाफ के लिए भटकना पड़ रहा है। उनमें से कुछ इंसाफ के लिए दर दर भटकने वाले छत्तीसगढ़ के कलमविरो का नाम इस प्रकार है। स्वर्गीय श्री मुकेश चंन्द्रकार ,कमल शुक्ला, दिनेश कुमार सोनी, जितेन्द्र जशवाल,विनोद नेताम, स्वर्गीय श्री सुशील शर्मा,किरीट ठक्कर,विजय पटेल,प्रकाश ठाकुर, पोषण साहू, कृष्णा गंजीर,अमित मंडावी,बप्पी राय, संतोष यादव सहित कई अन्य प्रत्रकार शामिल हैं।
तमाम घटनाक्रम को लेकर जानकारो का कहना है कि अमृतकाल के इस दौर में लोकतंत्र को ऐसे राजतंत्र में बदला जा रहा है जहां सनकी राजा का वचन ही शासन है और किसी को आवाज उठाने की इजाजत नहीं है।
विनोद नेताम कलम से क्रांति जारी है...