बालोद : छत्तीसगढ़ राज्य के अंदर कुछ दिनों बाद एक बार फिर नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव संपन्न होना तय है। हालांकि लगभग प्रदेश के सत्तर प्रतिशत हिस्सा में यह चुनाव संपन्न होगा इस बीच बाकी तीस प्रतिशत जगहों पर अगले के अंत साल में चुनाव संपन्न होने के कयास लगाया जा रहा है। इस बीच गौर करने वाली बात यह है कि किसी भी राजनीतिक दल के लिए नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में जीत दर्ज करना अनिवार्य माना जाता है,चूंकि पंचायत और नगरीय निकाय के जरिए ही सत्ताधारी पार्टी की सरकार अपनी योजनाओं के जरिए जनता के दिल पर राज कर सकता है और अपने लिए जनता के मध्य बेहतर छवि स्थापित कर सकता है। अतः किसी भी राजनीतिक दल के सरकार के लिए नगरीय निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव काफी मायने रखता है। बिते समय के दौरान सम्पन्न हुये नगरीय निकाय चुनाव और पंचायत चुनाव में मौजूदा सत्ताधारी राजनीतिक दल कांग्रेस पार्टी को बालोद जिले के तीनों विधानसभा क्षेत्रों में काफी सफलता प्राप्त हुई थी लेकिन अब जब प्रदेश में सियासी समीकरण पुराने समय के अनुसार काफी बदल चुका है, तब ऐसे में कयास यह लगाया जा रहा है कि इस बार के नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में भी मौजूदा सत्ताधारी राजनीतिक दल यानी कि भारतीय जनता पार्टी का पल्ला भारी हो सकता है।
कांग्रेस पार्टी से ताल्लुक रखने वाले ज्यादातर नगरीय निकाय और पंचायत स्तर के जनप्रतिनिधि हुये कांग्रेस पार्टी के अंदर उपेक्षा की शिकार। लोकसभा चुनाव से पहले कई कांग्रेसी नेताओं ने थामा भाजपा का हाथ।
अवगत हो कि बालोद जिले के अंदर मौजूद तीनों विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी की दबदबा बिते कई सालों से नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में एकतरफा बना हुआ प्रतीत नजर आता था ,लेकिन बिते विधानसभा चुनाव के दरमियान कांग्रेस पार्टी के अंदर टूट की स्थिति पनप गई और जिसके चलते कई जगहों पर कांग्रेस पार्टी को नगरीय निकाय और पंचायत स्तर पर तगड़ा नुक़सान उठाना पड़ा है। कांग्रेस पार्टी की शासन काल बतौर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के रूप में छत्तीसगढ़ राज्य की सत्ता पर काबिज रही तब बालोद जिला के अंदर कांग्रेस पार्टी को नगरीय निकाय और पंचायत स्तरीय चुनाव में भारतीय जनता पार्टी से काफी बढ़िया बढ़त हासिल हुई थी, लेकिन समय ने जैसे ही करवट बदली ठीक वैसे ही जिला के अंदर कांग्रेस पार्टी के द्वारा स्थापित की गई मजबूत बुनियाद भर्भरा कर गिरने लगा। हालांकि कांग्रेस पार्टी प्रदेश में सत्ता हाथ से गंवाने के बावजूद पूरे प्रदेश भर में दमखम के साथ नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में उतरने की तैयारी में जुटी हुई नज़र आ रही है। ऐसे में बालोद जिला के अंदर मौजूद तीनों विधानसभा क्षेत्र में कांग्रेस पार्टी से ताल्लुक रखने वाले विधायकों की भूमिका एवं मौजूदा नगरीय निकाय और पंचायत स्तर से ताल्लुक रखने वाले जनप्रतिनिधियों की भूमिका अहम स्थान रखता है। अब देखना यह दिलचस्प होगा कि आखिरकार कांग्रेस पार्टी भर्भरा कर गिरी हुई बुनियाद को एक बार फिर दोबारा से कैसे मजबूत करती है।
प्रदेश के अंदर सत्ता मिलने से उत्साहित भाजपाइयों में छिड़ा आम और खास बने का जंग। ग्रामीण अंचल क्षेत्र के अंदर मजबूती से कमल खिलाने हेतू गैरी मताने वाले कटृर भाजपाइयों की पार्टी स्तर पर पूछ परख कम।
किसी भी राजनीतिक दल के लिए काफी लंबे समय तक सरकार में बने रहने के बाद पांच के भीतर ही सत्ता में वापसी करना राजनीतिक स्तर पर बहुत बढ़िया माना जा सकता है। हालांकि बालोद जिले में कांग्रेस पार्टी की बेहतरीन राजनीतिक मुजाहिरा के चलते भारतीय जनता पार्टी को काफी नुक़सान उठाना पड़ा है और सिलसिला न सिर्फ जिला के तीनों विधानसभा क्षेत्र में लागू है अपितु नगरीय निकाय और पंचायत स्तर पर भी देखा गया है। अब गौर करने वाली बात यह है कि जब प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन चुकी है तब क्या ऐसे में विधायक विहीन बालोद जिला के अंदर भारतीय जनता पार्टी नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में कांग्रेस पार्टी से बढ़त हासिल कर पाती है कि नहीं? चूंकि राजनीतिक सूत्रों के हवाले से भारतीय जनता पार्टी को लेकर बार बार यह खबर सामने निकल कर आती रहती है कि जिला में पार्टी के अंदर गुटबाजी चरम पर पहुंच चुका है। हालांकि इस खबर के पीछे की सत्यता कंहा तक सही है यह कहा नहीं जा सकता है, लेकिन जिस तरह से भारतीय जनता पार्टी से ताल्लुक रखने वाले नेता और कार्यकर्ता अपने ही पार्टी के नेताओं को लेकर कई बार सार्वजनिक तौर पर टिका टिप्पणी कर बैठते हैं तब सवाल तो बनता ही है। बहरहाल भारतीय जनता पार्टी अपनी सियासी साख को जिला के अंदर कांग्रेस पार्टी से बढ़िया बनाने के लिए कमर कस चुकी है और देखना यह होगा कि आखिरकार जिला में आगे आने वाले दिनों के अंदर होने वाली नगरीय निकाय और पंचायत चुनाव में इसका प्रभाव पड़ता है।