मुकेश कश्यप
कुरूद. नगर सहित अंचल में हरेली पर्व की धूम रही।लोगों ने परंपरानुसार कृषि सामाग्री सहित औजारों आदि की पूजा अर्चना की।विधिविधान से पूजा अर्चना उपरांत चीला रोटी का भोग लगाया गया।इसी के साथ बच्चों और युवाओं ने गेड़ी पर चढ़कर इसका भरपूर आनंद लिया।इसी तरह घरों में हरे भरे रंगो और श्रृंगार वस्तुओ से घरों को भी सजाया गया।जीवन में हरियाली और खुशहाली के प्रतीक इस पर्व की खुशियां दुगुनी हो गई जब पारंपरिक धुनों से सजे गानों ने वातावरण में मनमोहकता ला दी।
विदित है कि परंपरानुसार प्रतिवर्ष हरेली पर्व श्रावण कृष्ण पक्ष की अमावस्या को मनाया जाता है।इस दिन पूरे राज्य में हरियाली देखने को मिलती है।ग्रामीण क्षेत्रों में यह त्योहार परंपरागत रूप से बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है।इस दिन का कृषि से गहरा संबंध है।किसान खेती में उपयोग होने वाले कृषि उपकरणों की पूजा करते हैं,गांव में बच्चे और युवा गेड़ी का आनंद लेते हैं। यह त्यौहार जुलाई माह में आता है यह त्योहार तब मनाया जाता है जब बारिश होने के बाद खेतों में फसलें हरी हो जाती हैं।हरेली त्योहार पर किसान नागर, गैंती, कुदाल, फावड़ा सहित कृषि में उपयोग होने वाले औजारों की सफाई करते हैं।इस मौके पर घरों में गुड़ का चीला बनाया जाता है। किसान कुल देवताओं और कृषि उपकरणों की पूजा कर अच्छी फसल की कामना करते हैं।किसान डेढ़ से दो महीने तक फसल लाने का काम खत्म करने के बाद यह त्योहार मनाते हैं।इस त्यौहार पर गाँवों में बच्चों के लिए विभिन्न प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाता है।इस मौसम में फसलों में अलग-अलग प्रकार की बीमारियों का खतरा रहता है।ऐसे में फसलों में किसी भी प्रकार की बीमारी न हो, साथ ही पर्यावरण भी सुरक्षित रहे, जिसके लिए किसान हरेली त्यौहार मनाते हैं। हरेली अमावस्या यानी श्रावण कृष्ण पक्ष अमावस्या के दिन किसान अपने खेतों और फसलों की धूप, दीप और अक्षत से पूजा करते हैं।हरेली हमारे छत्तीसगढ़ में खुशहाली और मौसम के हरे-भरे होने का प्रतीक माना गया है।