मुकेश कश्यप
कुरूद. रविवार को कुरूद में परंपरानुसार भगवान श्री जगन्नाथ जी की रथयात्रा प्राचीन श्रीराम मंदिर और गांधी चौक से निकाली गई।रथ में स्वार होकर जगत के स्वामी उमड़ी भीड़ में निकले। धुमाल की मनभावन ध्वनि में नाचते गाते हुए भक्तों ने प्रभु के रथ को खींचते हुए और शीश नवाते हुए जयकार लगाकर परिवार और जनकल्याण की अर्जी लगाई।
इस दौरान श्रद्धा भक्ति चरम पर रही । हर कोई रथ को खींचने के लिए तैयार रहे और इस मनभावन पल में प्रभु की सेवा में खुद को शामिल करने का उत्साह बनाए हुए थे।नगर में दो स्थानों से निकली रथयात्रा का विभिन्न सेवा संगठनों ने स्वागत मंच बनाकर स्वागत किया।वही भक्तो को प्रसादी का वितरण कर सेवा और भक्ति में जुटे रहे।इस दौरान भारी भीड़ उमड़ी रही।
विदित है कि भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा विश्व भर में प्रसिद्ध है।जगन्नाथ का शाब्दिक अर्थ है जग के नाथ अर्थात् ब्रम्हाण्ड के स्वामी. जगन्नाथ मंदिर पवित्र चार धामों में से एक महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है। उड़ीसा के पुरी में इस यात्रा के दौरान देश-विदेश से लाखों लोग भगवान जगन्नाथ की एक झलक पाने के लिए आते है।पुरी में यात्रा के समय भगवान श्रीकृष्ण उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा रथ पर सवार होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं और अपनी प्रजा का हालचाल जानते हैं।भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा आषाण शुक्ल द्वितीया को जगन्नाथपुरी में आरंभ होती है और इसका समापन दशमी तिथि को होता है।
जगन्नाथ रथ यात्रा का स्कंद पुराण में महत्व बताया गया है, रथ यात्रा में जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडिचा नगर तक जाता है वह पुनर्जन्म के बंधन से मुक्त हो जाता है।जो व्यक्ति भगवान के नाम का कीर्तन करते हुए रथ यात्रा में शामिल होता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है।जगन्नाथ रथ यात्रा भगवान जगन्नाथ के वार्षिक गुंडिचा माता मंदिर के ब्रह्मांड का प्रतीक है. एक बार बहन सुभद्रा ने नगर देखने की इच्छा ज़ाहिर की थी, तब जगन्नाथ जी ने रथ पर बैठकर उन्हें नगर भ्रमण कराया था, भगवान जगन्नाथ को भगवान विष्णु का ही रूप माना जाता है तथा इन्हें वैष्णव धर्म के अनुयायी भी मानते हैं।