कुरूद :- नगर सहित अंचल में धूमधाम के साथ बसंत पंचमी का पर्व मनाया गया। इस अवसर पर घरों में भी ज्ञानदायनी मां सरस्वती की पूजा आराधना की गई।इसी तरह मातृ-पितृ पूजन दिवस के रूप में बच्चों ने अपने माता-पिता का तिलक वंदन कर आरती उतार कर उनका आशीर्वाद प्राप्त किया। संगीतमय गीतों की श्रृंखला के बीच भाऊक और अपनेपन के पल ने इसे यादगार बनाया।
विदित है कि हिंदू धर्म में वसंत पंचमी मनाने को लेकर कई मान्यताएं हैं। माघ मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी को देवी मां सरस्वती का अवतरण हुआ था। इसलिए इस दिन ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। देवी सरस्वती का जन्म वसंत पंचमी को हुआ था, इसलिए उस दिन उनकी पूजा की जाती है, और इस दिन को लक्ष्मी जी का जन्मदिन भी माना जाता है, इसलिए इस तिथि को 'श्री पंचमी' भी कहा जाता है। वसंत पंचमी पर, वाणी की अधिष्ठात्री देवी सरस्वती की पूजा और प्रार्थना का बहुत महत्व है। आज मातृ पितृ दिवस भी है,जो कि हमें अपने-अपने माता पिता के प्रति समर्पित रहने और उनके बताए गए मार्ग पर चलने और अपनी जिम्मेदारियों को समझने के लिए प्रेरणा देती है।
बसंत पंचमी या श्री पंचमी हिन्दू त्यौहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन पीले वस्त्र धारण करते हैं। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है, तो पुराणों-शास्त्रों तथा अनेक काव्यग्रंथों में भी अलग-अलग ढंग से इसका चित्रण मिलता है। वसंत ऋतु का स्वागत करने के लिए माघ महीने के पाँचवे दिन एक बड़ा जश्न मनाया जाता था जिसमें विष्णु और कामदेव की पूजा होती हैं। यह वसंत पंचमी का त्यौहार कहलाता था।
उपनिषदों की कथा के अनुसार सृष्टि के प्रारंभिक काल में भगवान शिव की आज्ञा से भगवान ब्रह्मा ने जीवों, खासतौर पर मनुष्य योनि की रचना की। लेकिन अपनी सर्जना से वे संतुष्ट नहीं थे, उन्हें लगता था कि कुछ कमी रह गई है जिसके कारण चारों ओर मौन छाया रहता है। हालाकि उपनिषद व पुराण ऋषियो को अपना अपना अनुभव है, अगर यह हमारे पवित्र सत ग्रंथों से मेल नही खाता तो यह मान्य नही है।तब ब्रह्मा जी ने इस समस्या के निवारण के लिए अपने कमण्डल से जल अपने हथेली में लेकर संकल्प स्वरूप उस जल को छिड़कर भगवान श्री विष्णु की स्तुति करनी आरम्भ की। ब्रम्हा जी के किये स्तुति को सुन कर भगवान विष्णु तत्काल ही उनके सम्मुख प्रकट हो गए और उनकी समस्या जानकर भगवान विष्णु ने आदिशक्ति दुर्गा माता का आव्हान किया। विष्णु जी के द्वारा आव्हान होने के कारण भगवती दुर्गा वहां तुरंत ही प्रकट हो गयीं तब ब्रम्हा एवं विष्णु जी ने उन्हें इस संकट को दूर करने का निवेदन किया।