इस बार भी फूल रास्ते में बिछे हुए मिलेंगे या फिर सारे फूल दुबई में महादेव सट्टा एप वाले दाऊ जी की शादी में बिछा दिए गए है। छत्तीसगढ़ राज्य के बस्तर की द्वार मानें जाने वाली कांकेर शहर आदिवासीयो की प्राचीन नगरी है। आज इस नगरी में आदिवासियों की जगह गैर आदिवासियों का बोलबाला होने की बात जग जाहिर है। आज से कई साल पहले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बंगला देश से आए हुए शर्णार्थियों को कांकेर जिला के अलग-अलग हिस्सों में बसा दिया है जबकि यंहा पर रहने वाले गरीब आदिवासी परिवार वर्तमान समय में लापता हो चुके है।प्रियंका गांधी जो कि नफरत के बाजार में मोहब्बत की दुकानदारी खोलने की बात कहने वाले लोगों की जमात से आती है, लिहाजा कांकेर की जनसभा में मौजूद रहने वाले आदिवासियों की आंख में आंख डालकर यह बात क्या कह सकती है कि उनके जमात से आने वाले सरकारों ने आदिवासियों को नहीं लूटा है। आज के वर्तमान दौर में भी बस्तर के आदिवासियों में नरसंहार को लेकर दहशत है,जबकि कारी छत्तीसगढ़ राज्य में कांग्रेस पार्टी की भरोसे की सरकार चल रही है। सिलगेर आंदोलन सहित

बस्तर के अंदरूनी हिस्सों में बिते कुछ वर्षों के दौरान आदीवासीयो ने कई आंदोलन किए हैं सरकार के खिलाफ। कांग्रेस पार्टी की सरकार आदिवासियों के द्वारा किए जा रहे आंदोलनो को शांत करने हेतू अबतक ज्यादा कुछ नहीं कर पाई है। कांकेर शहर वर्तमान समय के दौरान भाजपा सांसद मोहन मंडावी की लोकसभा संसदीय क्षेत्र होने के बावजूद कांग्रेस पार्टी की सल्तनत पर टिकी हुई है। स्थानीय विधायक से लेकर मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के सलाहकारो की गृह नगरी के तौर पर शुमार कांकेर को छत्तीसगढ़ राज्य की दुसरे राजनीतिक राजधानी होने का दर्जा प्राप्त है। जिले के किसी कोने में रावघाट परियोजना संचालित है। बताया जाता है कि इस परियोजना के चलते कई आदिवासी परिवारों का जीवन दयनीय स्थिति में पहुंच गया है। वंही इस परियोजना को मंजूरी देने वाले लोग और इस परियोजना के जरिए आदीवासीयो की धरती से बहुमूल्य खनिज पदार्थ का दोहन करने वाली कंपनी मालामाल हो कर खुश हैं। कुछ साल पहले प्रियंका गांधी वाड्रा के भाई राहुल गांधी जो कि कांग्रेस पार्टी के सांसद और देश के जाने-माने विपक्षी नेता हैं। उनके द्वारा हसदेव अभ्यारण्य क्षेत्र में रहने वाले आदिवासी समुदाय के लोगों से वादा करते हुए कहा था कि जंगल नहीं कांटी जायेगी,लेकिन जंगल वंहा भी कांट ली गई और रावघाट परियोजना में भी कांटी गई है और कांटी जा रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि क्या कांग्रेस पार्टी आदिवासीयो को सिर्फ चुनाव जितने का फार्मूला समझ कर उनके भलाई हेतू सिर्फ भाषण देते है,जबकि हकीकत के धरातल पर कांग्रेस पार्टी के नेता आदिवासीयो को लूटने के लिए कॉरपोरेट घरानों के साथ खड़े दिखाई देते है। आदिवासियों के साथ हो रही भेदभाव को लेकर आदिवासीयो में जमकर नाराजगी व्याप्त है। कांग्रेस पार्टी के प्रति आदिवासीयो का पहले से जुड़ाव रहा है। आज भी बस्तर संभाग के अंदरूनी हिस्सों में मौजूद आदिवासी कांग्रेस पार्टी को अपना राजनीतिक समर्थन देने की बात कहते है। ऐसे में आदिवासियों को महज वोट बैंक का जरिया समझना कांग्रेस पार्टी के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।