बालोद/गुरुर :- भारतीय समाज में गुरू का महत्व ईश्वर भी बड़ा बताया गया है। वंही शिक्षा सबसे बड़ा दान माना गया है, लेकिन कलजुग के इस दौर में क्या हमारे समाज में मौजूद शिक्षक भारतीय समाज की अवधारणा को पूरा करने में पूरी तरह सफल हो पा रहे हैं, यह एक बड़ा सवाल है। शिक्षा निश्चित रूप से शेरनी का वह दूध है जिसे जो पीयेगा वो दहाड़ेगा,लेकिन शेरनी के दूध को हमारे युवाओं तक कौन निकाल कर मुहैया करायेगा यह एक बड़ा सवाल है। भारत सरकार और राज्य सरकार शिक्षा को भारतीय नागरिकों की मूल अधिकार मानते हुए देश के हर कोने में शिक्षा का उजियारा फैलाने का प्रयास कर रहा है। इसके लिए बकायदा सरकार हर वर्ष देश के ईमानदार टेक्स पेयरो की मेहनत और कमाई का एक बड़ा हिस्सा खर्च करता है। इस प्रयास के तहत सरकार के द्वारा सरकारी स्कूलों का निर्माण कराया जाता है।
साथ ही शिक्षा विभाग का गठन शिक्षा व्यवस्था का बराबर संचालन हेतू किया गया है। जिला प्रशासन में मौजूद जिला अधिकारी और जनप्रतिनिधियों को शिक्षा व्यवस्था की सुचारू संचालन का अलग जिम्मा सौंपा गया है। बावजूद इसके आज के कलयुगी जमाना में शिक्षा का स्तर जमीनी स्तर पर जीरो बट्टा सन्नाटा बना हुआ है। लिहाजा शिक्षा के क्षेत्र में भारत कई छोटे देशों से काफी निचे स्तर पर पहुंच गया है। हालांकि कुछ लोग जबदस्ती के विश्वगुरु होने का तमगा लिए फिर रहे हैं। बहरहाल छत्तीसगढ़ राज्य के बालोद जिला में फिर शिक्षा जगत को शर्मशार करने वाला वाक्या घटित हुआ है। घटनाक्रम के अनुसार जिला के राजनीतिक रण क्षेत्र गुरूर विकासखंड क्षेत्र अंतर्गत कनेरी स्कूल के शिक्षक इलाज के बहाने गोवा में गुल खिलाने की खबर है। गोवा में कनेरी के सरकारी स्कूल में पदस्थ शिक्षक की अपने साथियों सहित गुल खिलाने वाली तस्वीर सोसल मीडिया में वायरल होने के बाद हड़कंप मच गया है। उक्त मामले को लेकर जिला के लगभग हर लीड अखबारों ने खबर प्रकाशित किया है। जाहिर सी बात है इस वक्त बच्चों का वार्षिक परीक्षा चल रहा है। ऐसे में कोई शिक्षक इलाज के बहाने छुट्टी लेकर गोवा में गूल खिलाते हुए नजर आए यह कतई बर्दाश्त योग्य नहीं है। लेकिन संजारी बालोद विधानसभा क्षेत्र के राजनीतिक रण क्षेत्र में कुछ इसी तरह की एक और वाक्या घटित हुआ था, जिस पर बालोद शिक्षा विभाग ना जाने कार्यवाही करने या कार्यवाही करवाने से क्यों चुक गई आज तक कुछ भी पता नहीं चल सका है। जबकि ग्रामीणो ने बकायदा जिला शिक्षा अधिकारी को लिखित शिकायत पत्र सौंपा था। गोवा वाले मामले में जिस तरह मिडिया की भूमिका देखने को मिली है उस तरह की भूमिका मिडिया की मोखा के सरकारी स्कूल वाले मामले में नजर नहीं आई, जिसके चलते मामले में हंगामा उतना नहीं मचा जितना कि उक्त मामले को लेकर मचा है। दरअसल गुरूर विकासखंड क्षेत्र के ग्राम पंचायत मोखा के सरकारी स्कूल में पदस्थ रहे। एक वाय्खाता को लेकर कुछ दिन पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी ने कार्यवाही हेतू शिक्षा संचालनालय रायपुर को पत्र लिखने की बात कही थी लेकिन अरसा बीत गया कार्यवाही के नाम पर कानाफूसी तक सुनाई नहीं दिया है। अलबत्ता उक्त मामले से संबंधित व्याख्ता महोदय आज पर्यंत तक शिक्षा विभाग में बकायदा महा दान (शिक्षा) दिए जा रहे है। शिक्षा जैसे विभाग को सदैव ईश्वर के तुल्य आचरण के चलते पुजा जाता है, लेकिन यदि शिक्षा विभाग के अंदर इस तरह के गैर जिम्मेदाराना व्यवहार लोगों के समक्ष बार बार प्रकट होगा तो लोग सवाल तो करेंगे। आखिरकार शिक्षा विभाग को विभाग में पदस्थ शिक्षा के देवता याने कि शिक्षक कैसे बहाने बना कर मुर्ख बनाने में कामयाबी हासिल कर लेता है। क्या विभाग में तैनात शिक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी संभालने वाले अधिकारी इतने गैर जिम्मेदार है कि उसके खुद के नाक के नीचे से विभाग में पदस्थ शिक्षक चूना लगा रहे हैं और बकायदा गोवा में गूल खिला रहे हैं। अब ऐसे में क्या विभाग शेरनी का दूध सभ्य समाज की स्थापना हेतू एवं भविष्य में नव निर्माण हेतू हमारे बच्चों को दूध पीला पाने में सफल हो पायेंगे स्वंय विचार करें!
विनोद नेताम की कलम से....!