होली के गीत में भैय्या के संग भौजी के ठुमके, मदमोही में देवर बाबू लाली लुगरा में उलझे,जोगीया सा रा रा ..बालोद:- छत्तीसगढ़ राज्य की संस्कृति और सभ्यता बेजोड़ है। बेजोड़ संस्कृति और सभ्यता के तले होली का यह महापर्व भी राधा कृष्ण की अमर प्रेम की तरह और बंसत की यौवन के माफिक बेजोड़ है। प्राचीन काल से राज्य में होली का महापर्व पूरे राज्य भर में धूमधाम से मनाई जाने का पौराणिक परंपरा रही है या रिवाज रही है। सूब्बे के कस्बा, गांव, शहर बंसत की यौवन के इस महापर्व होली को शांति, प्रेम भाईचारा,एकजुटता, सद्भाव और बैराग का संदेश देते हुए मनाते हैं। वैसे तो होली का यह महापर्व रंगों का त्यौहार माना जाता है। इस बीच छत्तीसगढ़ राज्य के पावन धरा में मौजूद बालोद जिला के स्थानीय विधायकों और सत्ता धारी राजनीतिक दल के अन्य नेताओं को जिलावासियों ने रंग में सराबोर होते हुए अपनी खुली आंखों से देखा है। भले जिला के गांव गरीब, मजदूर,किसान,और युवा नवजवान होली के रंग और अबीर के साथ धमाकेदार बजट की खुशियों में झूमते दिखाई बहुत कम ही दिए हैं,लेकिन जनता के नुमाइंदे अपनी खुशियों की रंगों में रंगे दिखाई देना कोई नई बात नहीं है। खुशीयों की पर्व और होली की खुमारी शायद इसी को कहा गया है, लेकिन जनप्रतिनिधियों को यह भी याद रखना होगा कि वे जनता के चुने हुए नुमाइंदे है,और होली एक त्यौहार है,और त्यौहार की खुमारी पल भर की है। साथ ही यह भी याद रखना होगा कि उनकी सरपरस्ती में आम जनता को कंहा तक खुशियों की खुशहाल होली मनाने का मौका मिला हैं और कंहा तक जनता जनप्रतिनिधियों के रवैए,आचरण, कार्यप्रणाली, नैतिकता से परेशान हैं।
वैसे भी भारतीय राजनीति में एक किस्सा मशहूर है, अपना काम बनता और काम में भी जाए जनता,यही सियासत का दस्तूर है। और गनिमत से यह दस्तूर जिला में भी जमकर हावी है,जिसके चलते नेता ठूमके ऊपर ठूमके लगाते हुए नजर आते है और जनता ओपन और क्लोस में किस्मत आजमाते हुए दिखाई दिए जाते हैं। सूत्रों की मानें तो जिला में संचालित तमाम अवैध काले कारनामो को संरक्षण देने वाले कोई और नहीं बल्कि होली के रंगों में सराबोर ठूमके लगाने वाले जन-प्रतिनिधि लोग ही हैं। और इस बात को जिला के लगभग हर व्यक्ति अच्छे से जानता और पहचानता है। कम-से-कम आज के वर्तमान दौर में तो यही माना जाता है। पहचानने वाले लोगों में छोटे बच्चे और चारपाई से मुश्किल मुश्किल हालत में उठ खड़ा होने वाले बुजुर्ग तक शामिल हैं। जिला के हर गली, गांव, शहर,और घर में जब संदूक की पेटी या आलमारी से सौ रूपया की नोट गायब होता है,तो मां पुछती है आज सट्टा किसने लगाया रे ? फंस गया तो दो सौ रुपए वापस ला कर रख देना और 120 वाला प्लेन का एक पौवा। रंगों में सराबोर रहने वाले लोगों ने ही अपने काले कारनामों जिसमें अवैध सट्टा शामिल है, उसे ऊंचाईयों की बुलंदियों तक पहुंचाने हेतू बकायदा खाकी जैसी इमान तक को अपने गिरेबान में दबोच कर दिया है,और इमान की राह से भटका कर अवैध कारोबार को पालने पोसने का जिम्मा सौंप दिया। फलस्वरूप खाकी का वजूद भी काला पीला और नीला बन कर जिला में मौनी बाबा के अवतार में नंगा नजर आने लगा है। खाकी समाज की सूरक्षा के लिए है खाकी की यह हालत समाज को कतैई मान्य नहीं है। समाज ने खाकी को लेकर कभी यह कल्पना नहीं की है जिस तरह से सफेद वर्दी धारीयो ने इसे बनाने और बदनाम करने का प्रयास किया है। समाज को खाकी पर भरोसा है कि वह एक दिन अपनी अंदर से सफेदपोश नेताओं की जी हुजूरी को मंशा पर लगाम लगाते हुए समाज की बेहतरी हेतू कदम आगे बढ़ायेगी। ज्यादातर लोगों की मानें तो जिला में मौजूद जनप्रतिनिधि अपनी जिम्मेदारीयो को लेकर गैर जिम्मेदार रवैए अपनाते हुए नजर आए हैं। कमीशनखोरी और सत्ता का घमंड जिला में मौजूद ज्यादातर जनप्रतिनिधियो में जमकर हावी होने की बात आम जनता से लेकर उनके ही पार्टी के कई वरिष्ठ कार्यकर्ता कहते हुए अक्सर दिखाई दिए जाते हैं। अब ऐसे में उनकी छवि आम जनता के मध्य कैसी होगी यह बताने की आवश्यकता नहीं है। खैर जल्द राज्य में विधानसभा चुनाव सम्पन्न होना है ऐसे में तमाम नेताओं की नेतागिरी का कच्चा-चिट्ठा राजनीतिक दल के पास मौजूद है। जिनको भई टिकट दोबारा मिलेगा किस्मत आजमाने के लिए उन्हें फिर उसी जनता के पास आना होगा जिसे ओपन और क्लोस का बकायदा तालिम मुहैया कराई गई है। अब जनता इस दौरान किस्मत आजमाते रहिए कह कर घर से वापस लौटा दिया तब क्या होगा ? आगे की जानकारी हेतू बने रहे मेरे साथ, और होली पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं बुरा ना मानो होली है।विनोद नेताम