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आरामील पर वन विभाग की कार्यवाही,उठे सवाल ।

@विनोद नेताम 
बालोद : आरा मिल जंहा पर लकड़ी को एक तरह से तरासने का पहला काम किया जाता है। तरासी गई लकड़ी आरा मिल से निकल कर किसी आलीशान महल की शोभा बढ़ाने वाली सोफा बनने हेतू बढ़ाई यंहा चली जाती है तो कहीं इसी तरासी गई लकड़ी का उपयोग किसी व्यक्ति की सपनों के महल को नई मुर्त रूप देने हेतू उपयोग में लाई जाती है। वृक्ष जिंदा रहने के दौरान समस्त मानव जाति पर कल्याण तो करता ही है, लेकिन इसके कट जाने पर भी मानव समाज में इसकी उपयोगिता कम नहीं होती है। शायद यही कारण है कि लोग एक वृक्ष को सौ पुत्र समान मान कर चलते हैं। आधुनिकता और चक्काचौंध की इस दौर में एक ओर जहां सिमेंट और लोहा की शहर बसाई जा रही है, तो वंही दूसरी ओर सिमेंट और लोहा से बनने वाली यह शहर धरती से उसकी खूबसूरती को छीन कर तहस नहस करते हुए एक अलग पहचान बनाने में सिद्दत से जुटा हुआ है। समस्त प्राणी जगत में इंसानों की प्रजाति को बुद्धीमता का प्रमाण पत्र हासिल है। लिहाजा बुद्धि से लबरेज इंसान धरती की खूबसूरती को बरकरार रखने हेतू उपाय भी कर रहे हैं। अब बिगाड़ रहे हैं तो स्वाभाविक है बनाने का प्रयास भी करेंगें। अतः इंसानो द्वारा जगह जगह पर्यावरण संरक्षण से संबंधित विषयों पर काम किए जाने की बात कही जाती है। इंसानों के द्वारा किए जा रहे प्रयास का नतीजा आज क्या है यह किसी से छुपा नहीं है। हां यह अलग बात है कि इंसान कुछ सफलता हासिल करने के बाद डिंगे हांकने में लग जाता है,लेकिन कुछ जगहों पर इंसान पर्यावरण संरक्षण के नाम पर महज दिखावा छोड़कर धरातल पर सचमुच की काम कर रहे हैं। जिसमें छत्तीसगढ़ राज्य के बालोद जिला अंतर्गत वन विभाग भी शामिल हैं। जिन्होंने ने जिला के गुरूर विकासखंड क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत बोडरा में स्थित आरा मिल में छापा मारकर प्रतिबंधित लकड़ीयों का जखीरा बरामद किया है। वैसे देखा जाए तो वन विभाग प्रशासनिक तौर पर जंगल और जंगल से जुड़े हुए विषयों पर कार्य करने वाले विभाग के तौर पर जाना व पहचाना जाता राहा है और सदियों से वन विभाग बालोद जिला में आच्छादित जंगल की खूबसूरत वादियों की रक्षा के लिए जिम्मेदारी के डटी हुई है। माना जाता है कि आज से लगभग बीस साल पहले जिला में हर तरफ हरियाली ही हरियाली नजर आती थी ,लेकिन समय के साथ परिवर्तन स्वाभाविक है लिहाजा जिम्मेदार वन विभाग के रहते हुए यह हरियाली अब चंद जगहों में सिमट कर रह गई हैं।  सिमटने के कई कारण हो सकते हैं जिसमें जिला के समूचे भू भाग में फैले लकड़ी कारोबार से जुड़े हुए लोग व कारोबारी भी शामिल हो सकते हैं। लकड़ी इंसानों की सबसे मूल जरूरत के संसाधनों में गीना जाता है। इसलिए मनुष्य इसे प्राचीन काल से उपयोग में ला रहे हैं और बकायदा इस पर कारोबार भी कर रहे हैं। कारोबार के जरिए लकड़ी कारोबारी किसानों से लकड़ी खरीदते हैं और इस लकड़ी को जिला के आरा मिल में ले जाकर बेंच देते है,या फिर आरा मिल के बाहर खरीदने वाले लोगों को बेंच देते है। यानी यह स्पष्ट है कि आज के सिमेंट और लोहे से बनी हुई शहरों में भी लकड़ी के कद्रदानों की कोई कमी नहीं है। अब जब यह स्पष्ट है कि लकड़ी कारोबार पुराने दिनों के माफिक आज भी जारी है तब बैगर आरामील और लकड़ी कारोबारी के बीना तो यह संभव नहीं है। जिला लगभग हर क्षेत्र में इस कारोबार से संबंधित लोग जुड़े हुए हैं और आरामील भी संचालित है। जिसमें से ज्यादातर आरामिलो में प्रतिबंधित लकड़ीयों का जखीरा खुलेआम पड़ा रहता है। उदाहरण के लिए गुण्डरदेही और अर्जुंदा। वंही जिला के गुरूर वन परिक्षेत्र अंतर्गत ऐसे कई आरामिल है, जंहा पर प्रतिबंध लकड़ी खुलेआम आरामिलो में पड़ी हुई नजर आ जाती है। वन विभाग बालोद को ऐसे आरामिलो पर भी कार्यवाही करना चाहिए। बोडरा में स्थित आरामिल पर कार्यवाही को लेकर वन विभाग बालोद इन दिनों सवालों के घेरे में है क्योंकि खुलेआम प्रतिबंध लकड़ीयां प्रायः प्रायः सभी जगह की आरामिलो में पड़ी हुई नजर आती है तो फिर कार्यवाही एक पर ही क्यों ? सूत्रों की मानें तो मामला लेन-देन से जुड़ा हुआ है। अतः कार्यवाही बात आसानी से समझा जा सकता है ।

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