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मां डिडेष्वरी के इतिहास से रूबरू हुए पत्रकारिता के छात्र छात्राएं

 

रायपुर...राजधानी रायपुर के गांधी चौक स्थित मंहत लक्ष्मीनारायण दास महाविद्यालय के पत्रकारिता विभाग के छात्र छात्राएं शैक्षणिक भ्रमण पर बिलासपुर संभाग के अर्न्तगत मल्हार ब्लॉक में मां डिडेष्वरी के मंदिर 25 नंवबर को पहुंचे । यहां पर छात्र छात्राओं ने मां डिडेष्वरी के प्राचीन इतिहास को जाना । जिसमें मंदिर में मौजूद पंडित रामकुमार चौबे ने बताया कि यह मंदिर 11 वी 12 शताब्दी में कल्चुरी के राजा महाराजाओं ने बनवाया था । बाद में राजपाठ का वैभव समाप्त होने के बाद स्थानीय केंवट लोगों ने माता की पूजा अर्चना की और मंदिर को कमेटी ने नया स्वरूप् दिया उन्होनंे बताया कि मां डिडेष्वरी की यह मूर्ति पदमासन अवस्था में है क्योंकि कहा जाता है

कि माता पार्वती ने भगवान भोलेनाथ की प्राप्ति के लिए पदमासन मुद्रा में काफी कठिन तप किया था छात्र छात्राओं को पंडित चौबे ने बताया कि यह र्मूिर्त में दो सिंह बने हुए है वही मां डिडेष्वरी के नामकरण पर कहना था कि छग में एक शब्द डिढ़वा को खूब प्रयोग में लाया जाता है जो यहां के स्थानीय लोग करते रहे इसीलिए माता का नाम डिडेष्वरी देवी रख दिया गया
काफी श्रद्धालु आते है 

मां डिडेष्वरी देवी के प्राचीनतम इतिहास के साथ अन्य जानकारियों से जोड़ते हुए छात्र छात्रओं को स्थानीय पत्रकार संजीव पांडेय ने बताया कि वर्ष 1993 में डिडेष्वरी की मूर्ति चोरी चली गई थी उसके बाद 2 माह बाद उप्र0के मैनपुर से मां डिडेष्वरी की मूर्ति को बरामद किया गया उसके बाद से यहां पर कमेटी गठित कर दी गई जिसमें स्थानीय जिलाधीष पदेन अध्यक्ष है और एस डी एम, टी आई व सी एम ओं पदेन सदस्य है। वही निषाद समाज के लोग मंदिर की देखभाल करते है जिसमें शैलेद्र केवर्त अध्यक्ष, महेष केैवर्त उपाध्यक्ष, व अनिल कैवर्त कोषाध्यक्ष है। वही काफी पर्यटक और श्रद्धालु कई स्थानों से आते है इसमेें देष व विदेष के पर्यटक शामिल है।

ग्रेनाइड पत्थर की कलात्मक मूर्ति

पत्रकार संजीव पांडेय ने प्रषिक्षु पत्रकारों को जानकारी दी की यह मूर्ति ग्रेनाइड पत्थर की कलात्मक मूर्ति है जिसका काफी पुरातात्विक महत्व है इसलिए मूल्य लगापाना कठिन है उनहोने कहा कि जब यह चोरी गई थी तब 1993 में 14 करोड़ रूप्ए आंकलन किया गया था

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