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वाह रे गोबरधन लीला

                     
विनोद नेताम
आए हैं सो जाएंगे, राजा रंक फकीर ।
एक सिंहासन चढ़ि चले, एक बंधे जंजीर ॥
 कबीर दास जी इस दोहे के माध्यम  से कहते है कि जो इस दुनिया में जन्म लिया है,उसकी मृत्यु अटल है। चाहे वह राजा या कंगाल अथवा फकिर हो सबको इस दुनिया से जाना है लेकिन कोई सिहासन पर बैठकर जाएगा और कोई जंजीर से बंधकर।   अर्थात जो भले काम करेंगें वो तो सम्मान के साथ विदा होंगे और जो बुरा काम करेंगें वो बुराई रूपी जंजीर मे बंधकर जाएंगे 
             TOPBHARAT - DESK RAIPUR : भारतीय विविधता का एक अंश धार्मिक पौराणिक सांस्कृतिक परम्परा और सभ्यता भी है। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार द्वापरयुग में भगवान कृष्ण ने स्वार्गादि पति इंन्द्र की क्रोधाग्नि से वृंदावन वासियों को बचाने हेतू गोबरधन पर्वत को अपनी छोटी सी उंगली से उठाकर स्वर्गादपति इंन्द्र के अंहकार को चूर किया था। हालांकि आधुनिक युग के दौरान भगवान कृष्ण के द्वारा रची गई इस लीला का कोई भी वजूद धरती पर मौजूद नहीं है जिसके बावजूद धार्मिक पौराणिक सांस्कृतिक परम्पराओं को मानने वाले लोग भगवान कृष्ण की इस लीला पर यकीन करते गोबरधन लीला का गुणगान करते हैं। आधुनिकीकरण के इस दौर में आज के युवा पीढ़ी भगवान कृष्ण के द्वारा रची गई इस घटनाक्रम से जुड़ी हुई अच्छे विचारों को ग्रहण कर अपनी जीवन यात्रा में आगे बढ़ रहे हैं। मान्यतानुसार कहा जाता है कि  द्वापरयुग के दौरान वृंदावन में खूब दूध और दही हुआ करता था। बहरहाल हम आज कलजूग के वर्तमान दौर में है और हम छत्तिसगढ़ राज्य पर चर्चा कर रहे है। राज्य की पवित्र भूमि पर विगत कई वर्षों से गोबरधन लीला की जबदस्त शुरुआत होने की खबर सूत्रों से प्राप्त हुआ है। बताया जाता है कि इस धरा पर विराजमान मुखिया जी वृंदावन की भांति दूध और दही की जगह दारू पैदा कर रहे है। राज्य में पैदा की जा रही दारू को वृंदावन में जैसे कुछ मूल्य पर दूध और दही को आम नागरिकों में बांटा जाता था ठीक उसी प्रकार यंहा के नागरिकों को बांटा जाता है कुछ पैसा लेकर। हालांकि दूध दही और दारू में जमीं आसमान का फर्क होता है अतः द्वापरयुग में भगवान कृष्ण द्वारा रचित गोबरधन लीला और आज के वर्तमान समय की गोरधन लीला में जंमी आसमां का फर्क होना स्वाभाविक है। ऐसे में कलजूग के मुखिया द्वारा रचित गोबरधन लीला को समाज भगवान कृष्ण द्वारा रचित गोबरधन लीला से अलग क्यों मानें सवाल यहां उठता है। चूंकि दारू किसी भी समाज को लज्जित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है अतः सवाल उठना लाजिमी है।

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