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क्या अशिक्षा के अंधियारे में दामन छुपाए बैठी हुई है बालोद शिक्षा विभाग।

     @विनोद नेताम                                    
बालोद : शिक्षा शेरनी का वह दूध है जिसे जो पियेगा वो दहाड़ेगा यह शब्द देश के संविधान निर्माता बाबा भीमराव आंबेडकर साहब का है। इस शब्द को उकेरने से पहले से बाबा साहब शिक्षा की महत्व और शिक्षा की उपयोगिता को पूर्ण रूप से समझ चुके होंगे जिसके बाद यह शब्द समाज को शिक्षा की महत्व को समझाते हुए उन्होंने कहा है। चूंकि आज के आधुनिकीकरण की इस दौर में शिक्षा का मायने लोग कई तरह से लगाते हुए उपयोग में लाते हैं। अतः आज के दौर में ज्यादातर लोग अधिक शिक्षा अर्जित करने के बावजूद दहाड़ने की जगह सिर्फ म्यूं म्यूं कहते हुए नजर आते है। बहरहाल जिला शिक्षा विभाग बालोद जिसे जिलावासी दहाड़ते हुए देखना चाहते है। दुर्भाग्य से शायद जिला वासियों की इसे बदकिस्मती कहा जाए कि अब तक विभाग की दहाड़ में यहां भी लोगों को म्यूं ही सुनाई दिया है। गौरतलब हो कि शिक्षा विभाग बालोद को लेकर जिला वासियों के मध्य विचार ज्यादा कुछ अच्छा नहीं रहा है,जबकि आत्मानंद जैसे अंग्रेजी संस्थान की सफल कामयाबी के बाद जिलावासियों की विचारधारा शिक्षा विभाग बालोद को लेकर परिवर्तित हो जाना चाहिए था। यदि विभाग को लेकर जिला वासियों के मध्य कुछ शिकायत है तो उसे विभाग के द्वारा दूर किया जाना चाहिए ताकी शिक्षा का उजियारा जिला के हर कोना में पहुंच सकें और हर स्तर के अंधियारे को यह उजियारा खत्म कर पाने में कामयाब हो सकें। चूंकि जिला शिक्षा विभाग बालोद विगत कुछ वर्षों से राजनीतिक चुंगल में दबे होने की आंशका जताई जा रही है। अतः जिला वासियों की अपेक्षाओं का दिवाला निकलना स्वाभाविक है। ऐसे में कई बार लोगों को शिक्षा विभाग की बंद जुंबा हैरान और हतास कर देती है। हाल फिलहाल जिला में मुख्यमंत्री भूपेश बघेल का आगमन हुआ था। इस दौरान एक फिर शिक्षा विभाग बालोद की लचर व्यवस्था का प्रदर्शन पिनकापार में स्पष्ट रूप से सबके सामने बेपर्दा हो गया। वो तो गनिमत रही कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल शिक्षा विभाग की यह लचर व्यवस्था बर्दाश्त नहीं कर सकें लिहाजा मुख्यमंत्री ने तत्काल प्रतिक्रिया जाहिर करते हुए विभाग की लाज बचाने में सफल रहे। हद तो तब हो गई है जब शिक्षा विभाग मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के द्वारा दिए आदेश पर निठल्ला बन कर चुपचाप तमाशबीन बने रहे। निश्चित तौर पर पिनकापार वाले मामले में शिक्षा विभाग के द्वारा किया गया चूक  जिलावासियों की चिंता को जाहिर करती है। ऐसे में विभाग को लीपापोती करने की रिवाज को खत्म कर बैगर राजनीतिक दबाव के कार्य करना उचित रहेगा ताकी विभाग को लेकर लोगों के मध्य जो चिंता लकीर नजर आ रही है। उस पर विराम लग सके। वंही एक और मामला है जिस पर जिला शिक्षा विभाग की चुप्पी लोगों की चिंता को पिछले दिनों और ज्यादा बढ़ा दिया था। चूंकि शिक्षा विभाग बालोद ने शिक्षा संचालनालय को उक्त मामले में कार्यवाही हेतू पत्र भेज दिया है अतः इस मामले में भी आगे चल कर लोगों की चिंता कम होने का आसार हैं। सर्वविदित है कि गुरूर विकासखंड क्षेत्र अंतर्गत ग्राम पंचायत मोखा के सरकारी स्कूल में पदस्थ वख्याता के संबंध में शिक्षा विभाग बालोद में एक मामला काफी दिनों से लंबित पड़ा हुआ है। मामले में जिला शिक्षा विभाग बालोद ने शिक्षा संचालनालय रायपुर में पत्र भेजकर हटाने की मांग  किया है। उक्त मामले को लेकर अब भी कुछ राजनीतिक पृष्ठभूमि से जुड़े हुए सत्ता रूढ़ राजनीतिक दल के नेता कुछ अलग दलील दे रहे है। मोखा शासकीय स्कूल की घटना पर ब्लाक कांग्रेस कमेटी गुरूर के पूर्व अध्यक्ष नूतन किशोर साहू ने सोसल मीडिया पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि उक्त मामला शाला प्रबंधन समिति अध्यक्ष के द्वारा कूट रचित है। वंही मामले में शाला प्रबंधन समिति अध्यक्ष ने कहा है कि नूतन किशोर साहू कौन होता है सच और झूठ का फैसला करने वाला। मामले में शिकायत पत्र जो जिला शिक्षा अधिकारी को सौंपा गया है वह शाला प्रबंधन समिति ग्राम पंचायत मोखा का निर्णय है। विदित हो कि इसी स्कूल में पदस्थ एक शिक्षक जो वर्तमान समय में जेल की हवा खा रहा है। ऐसे में मोखा शासकीय स्कूल में पदस्थ व्याख्याता के मामले में शिक्षा विभाग आखिरकार कार्यवाही में इतना विलंब क्यों किया। क्या सत्तारूढ़ राजनीतिक दल के नेताओं का इस मामले में हस्तक्षेप राहा जिसके चलते उक्त मामले में राजनीतिक करण की बात कही जाती थी। खैर जो भी हो जिला शिक्षा विभाग बालोद को अपनी जिम्मेदारियों को निभाने हेतू राजनीतिक बैशाखियों को छोड़कर शिक्षा नामक दूध पीना उचित होगा ताकि ऐसे मामलों में विभाग की दहाड़ काम आये और विभाग के प्रति जिलावासियों में भरोसा और विश्वास कायम हो पाए ।

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