विनोद नेताम ठीक से समझ लीजिए। धन आता है, कमाने से,और उसके लिए कठिन परिश्रम करना पड़ता है। लेकिन प्रोपर्टी आ सकती है, कब्जियाने से। कब्जे की प्रॉपर्टी का वेल्युएशन, भी आपका धन काउंट किया जाता है।
नही समझे। चलो एक और कोशिश।
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आपके पड़ोस में मकान था, खाली पड़ा था। कीमत 100 करोड़ की।
अब आपकी जेब मे 2 हजार रुपये थे। आपने 8 हजार बैंक से कर्ज लेकर जुगाड़े। थानेदार को दस हजार की रिश्वत दी, और उस मकान को कब्जिया लिया।
हो गयी आपकी कीमत 100 करोड़ की।
जेब मे फूटी कौड़ी नही, कमाई का ठीक ठिकाना नही, कर्जा 8 हजार का है। लेकिन हो गए आप शहर के 2 नम्बरी अमीर।
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अब बात रोजगार देने की। आपने इस मकान की सिक्योरिटी के लिए एक कुत्ता पाला। खर्च दो बिस्किट और ढेर सारा प्यार... बस।
लेकिन नो रोजगार। उसी शहर में 10-20 करोड़ के बिजनेस वाले लोगो ने सौ- पचास लोगो को रोजगार दे रखा है। उनके कर्मचारी अपने अडोस पडोस मे दिखते हैं। दुकाने दिखती है, व्यापार दिखता है, प्रोडक्ट दिखते हैं। वीवो, नेस्ले, प्यूमा, विंडोज दिखते हैं।
इनके न कर्मचारी है, न प्रोडक्ट। दरअसल इस सौ करोड़ी अमीर ने बस महज एक कुत्ते को रोजगार दिया है। क्योकि उसे, इस मकान के लिए बहुत ज्यादा कुत्ते चाहिए भी नही।
क्योकि पूरा शहर जानता है कि थाने में उसका बड़ा वाला पालतू बैठा है। छत्तीसगढ़ राज्य जैसे आर्थिक रूप से कमजोर राज्य में ऐसे अनेक करोड़ी अमीर राजनेताओं का भरमार होने की बात जगजाहिर है। अमीर धरती के गरीब लोगों पर हुकूमत करने वाले प्रदेश के करोड़ी अमीर राजनेताओं की बात कुछ अलग है। इनके भी घरों के बाहर कुत्ते बंधे होने की लाजमी है। चूंकि उस कुत्ते को खिलाने हेतू जनता का लहू दिया जाता हैं,और रोजगार के नाम पर इनके द्वारा महज दिखावा किया जाता है। अतः इन करोड़ी अमीर राजनेताओं को लेकर आम जन मानस में क्या विचार हो सकता है इसे समझना आसान है। वैसे इन करोड़ी अमीर राजनेताओं में से कुछ राजनेताओं पर तो बकायदा अवैध कब्जियत संबंधित मामला दर्ज हैं। वंही कुछ अमीर राजनेताओं की अमीरी का राज आज भी लोगों के सिने में दफन हैं,जो कभी भी वक्त बे वक्त बाहर आ कर करोड़ी अमीरों की दफन राज को उगल सकती है। यदि सरकार की मंशा रही तो ऐसे करोड़ी अमीर राजनेताओं की कमाई का जरिया और फंडामेंटल को उजागर किया जा सकता है।
इससे पूर्व छत्तिसगढ़ सरकार के मुखिया रह चुके करोड़ी अमीर राजनेता ने अपने साथी करोड़ी अमीर राजनेताओं की कमीशनखोरी के जरिए जनता का लहू पीने का राज उगल चुके है। ऐसे में प्रदेश के सर पर पहाड़ जैसी कर्ज की मायने को समझना बहुत आसान है। दरअसल प्रदेश में सरकार ने कर्ज का पहाड़ खड़ा कर दिया है। यह कर्ज इतना बड़ा है कि प्रदेश की जनता को इस कर्ज को उतारने हेतू पसीना के साथ यदि लहू बहाना भी पड़े तो कम पड़ जाए जिसके बावजूद कर्ज की अदायगी मुश्किल है। वो तो गनिमत है कि राज्य के अंदर मौजूद सरकार लोगों को सस्ती दर पर खाद्यान्न मुहैया करा रही हैं। चूंकि सरकार लोगों को सस्ती दर पर खाद्यान्न मुहैया करा रही हैं अतः कर्ज पर लोगों की झुंझलाहट कम नजर आ रही है। लोगों की इस रवैए का मौजूदा सरकार भी जबदस्त तरीके से फायदा उठाते हुए और कर्ज का बोझ राज्य पर डाल रही है,जबकि जनता अपने में मस्त हो कर कर्ज चुकाने हेतू तैयार खड़ी हुई नजर आ रही है। जरा सोचिए क्या कर्ज के दम पर किसी का आजतक विकास हुआ है यदि नही हुआ है तो यंहा पर कैसे संभव होगा। निश्चित रूप से यह सवाल लोगों की जेहन में मौजूद हैं,लेकिन मौजूदगी के बावजूद लोग कह नहीं पा रहे है,जबकि सरकार लोगों की इस अनकही सवाल पर अंदर ही अंदर काफी खुश नजर आ रही है। शायद राजनीति यही है और राजनीति में कब्जियाने की रस्म को पालिटेक्ल अंजेडा माना जाता है। इसलिए छत्तीसगढ़ राज्य जिसे अमीर धरती के गरीब लोगों की भूमि कहा जाता है वंहा पर अमीर राजनेताओं की उपज धान की खेतों में उगने वाली खरपतवारों से कंही ज्यादा उपज रही है।