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आरक्षण पर हाईकोर्ट के फैसले से कांग्रेस और भाजपा के चेहरे पर कुटिल मुस्कान क्यों?

                विनोद नेताम                     
रायपुर :- भारत के धरती पर रहने वाले मूल निवासीयो का गढ़ छत्तिसगढ़ वैसे तो पूरे संसार भर में मूल निवासीयो की धार्मिक पौराणिक सांस्कृतिक परम्परा और सभ्यता के लिए विख्यात है। सूब्बे में लगभग दो तिहाई से ज्यादा की जनसंख्या में मौजूद मूल निवासी के लिए एक ओर सत्ता पर काबिज रहने वाले रहनूमाओ ने बहुत कुछ करने का प्रयास किया है। ऐसा उनका दावा है, हालांकि उनका यह दावा कंहा तक सही है यह कहा नहीं जा सकता है। लिहाजा भले इस प्रकार का दावा सत्ता में काबिज रहने वाले लोगों की ओर से मूल निवासीयो को रिझाने हेतू किया गया हो, क्योंकि हकिकत पर धरातल का मंजर आज भी बद से बद्तर है। चूंकि रहनूमा चयन के बख्त उनका यह दावा उनके लिए सही साबित हो सकें इसलिए मूल निवासीयो को बरगलाया गया है। दूसरी ओर झूठी दिलासा देकर बहुत कुछ लुटने का प्रयास करने वाले रहनूमाओ की भी कमी नहीं रही है। अलबत्ता राज्य के ज्यादातर मूल निवासीयो की जीवन आज भी हासिए पर है। जल जंगल जमीन की लड़ाई आज भी भारत के अमीर धरती के गरीब लोग सिद्दत से कर रहे है,जबकि दावा करने वाले रहनूमाओ की दावो और वादों का कोई अता-पता नहीं है। आज भी प्रदेश के अंदर मौजूद मूल निवासी समुदाय से जुड़े हुए लोग अपनी मांगों को लेकर उतने ही सजग नजर आते है,जितना कि पहले सजग रहते हुए देखे जाते थे। चूंकि सूब्बे में हुकूमत करने वाले रहनूमाओ ने हर बार इन समुदायों को इनकी मांगों पर ना सिर्फ झूनझूना पकड़ाया है बल्कि इनके मांगों को भी कुचलने का प्रयास किया है। अतः मूल निवासीयो को आज भी अपने  अधिकारों के लिए जद्दोजहद करते हुए देखा जाता हैं और करने की इन्हें आगे भी आवश्यकता भी नजर आती है। इस बीच मूल निवासी समुदाय से जुड़े हुए लोगों के बीच बरसों से एक और समस्या विराजमान है वह समस्या है आरक्षण । दरअसल प्रदेश में निवासरत मूल निवासीयो की ज्यादातर संख्या जैसे कि पहले बताया गया है कि हासिए पर है। चूंकि देश के संविधान में निहित अनुच्छेदो में संविधान विशेषज्ञों ने स्पष्ट रूप से वर्णित किया है कि गरीब और पिछड़े हुए समुदाय को समाज के मुख्यधारा में मजबूती से स्थापित करने हेतू इन तबकों को आरक्षण की जरूरत है। शायद आरक्षण के आधार पर देश के अंदर मौजूद रहने वाले ज्यादातर गरीब और पिछड़े तबकों को समानता का अधिकार मिल पायेगा यह उनकी सोच रही,लेकिन देश के अंदर मौजूद राजनीतिक इच्छाशक्ति ने संविधान विशेषज्ञों के द्वारा वर्णित शब्दों का जिस तरह राजनीति करण किया है। वह निश्चित तौर पर काबिले तारीफ है,राजनीतिक करण चलते आज देश के ज्यादातर हिस्सों में आरक्षण को लेकर बवाल स्पष्ट तौर पर देखा जा सकता है। आगे आने वाले दिनों में कुछ इसी तरह के बवाल सूब्बे में भी देखने को मिल सकता है। चूंकि छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने 32% एसटी रिजर्वेशन छत्तीसगढ़ में खत्म करने का फैसला किया है। गुरू घासीदास साहित्य एवं सांस्कृतिक अकादमी और कुछ अन्य संगठनों द्वारा 32% एसटी रिजर्वेशन को दी गई चुनौती के मामले में सुनवाई खत्म कर 6 जुलाई को हाईकोर्ट ने फैसला सुरक्षित किया था। मुख्य न्यायमूर्ति की खंडपीठ के समक्ष छत्तीसगढ़ लोक सेवा आरक्षण संशोधन अधिनियम 2012 और शिक्षण संस्थानों में आरक्षण अधिनियम को चुनौती का मामला मार्च 2012 से हाई कोर्ट बिलासपुर में लंबित था। जिस फैसला देते हुए हाईकोर्ट ने 19 दिसंबर को फैसला सुना दिया है। चूंकि आगे आने वाले दिनों के दौरान राज्य में विधानसभा चुनाव संपन्न होना है ऐसे में आरक्षण का मुद्दा राजनीतिक दलों के लिए फिर एक बड़ा मुद्दा बन सकता है। लिहाजा इस सत्ताधारी दल और मुख्य विपक्षी राजनीतिक दल आमने-सामने नजर आ रहे है। इस दौरान राजनीतिक दलों की इच्छा होगी कि मामले पर इतनी राजनीति किया जाए कि उन्हें विधानसभा चुनाव में इसका भरपूर फायदा मिल जाए। वैसे भी आरक्षण की राजनीति के दम पर कई सरकार बनी है और बिगड़ी भी है। ऐसे में देखना यह है कि इस बार इस मुद्दे पर किस राजनीतिक दल की सरकार सूब्बे में बनती है और किसकी बिगड़ती है।

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