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आखीर चिड़ीमार और पालतू तीतर कौन है

विनोद नेताम
आखीर चिड़ीमार और पालतू तीतर कौन है 
बाजा़र में एक चिड़ीमार तीतर बेच रहा था,
उसके पास एक बडी जालीदार टोकरी में बहुत सारे तीतर थे!
और एक छोटी जालीदार टोकरी में सिर्फ एक ही तीतर था! एक ग्राहक ने पूछा एक तीतर कितने का है?
40 रूपये का!"
ग्राहक ने छोटी टोकरी के तीतर की कीमत पूछी।
 तो वह बोला
मैं इसे बेचना ही नहीं चाहता!"लेकिन आप जिद करोगे,तो इसकी कीमत 1000 रूपये होगी!"ग्राहक ने आश्चर्य से पूछा,इसकी कीमत इतनी ज़्यादा क्यों है?"
“दरअसल यह मेरा अपना पालतू तीतर है और यह दूसरे तीतरों को जाल में फंसाने का काम करता है!"
“जब ये चीख पुकार कर दूसरे तीतरों को बुलाता है और दूसरे तीतर बिना सोचे समझे ही एक जगह जमा हो जाते हैं फिर मैं आसानी से सभी का शिकार कर लेता हूं!"
बाद में, मैं इस तीतर को उसकी मनपसंद की 'खुराक" दे देता हूँ जिससे ये खुश हो जाता है!
"बस इसीलिए इसकी कीमत भी ज्यादा है!"
उस समझदार आदमी ने तीतर वाले को 1000 रूपये देकर उस तीतर की सरे आम बाजार में गर्दन मरोड़ दी!
उसने पूछा "अरे, ज़नाब आपने ऐसा क्यों किया?
उसका जवाब था,
ऐसे दगाबाज को जिन्दा रहने का कोई हक़ नहीं है जो अपने हित के लिए अपने ही समाज को फंसाने का काम करे और अपने लोगो को धोखा दे!"
हमारे देश में भी ऐसे 1000 रू की क़ीमत वाले बहुत सारे गुलाम तीतर हैं।                                                             
  वैसे इन दिनों छत्तिसगढ़ राज्य के अंदर ऐसे गुलाम पालतू तितरो की झुंड सूब्बे के अंदर खुले तौर पर घुमने की जानकारी मिल  रही है,जिनका मुख्य कार्य है समाज के अंदर मौजूद रहने वाले स्वंत्रत तितरो को जाल में फंसाकर उन्हें सत्ताधारी चिड़ीमारो के हाथों में सौंपना ताकि सत्ता धारी चिड़ीमार इन तितरो बाजार में बेंच सके और मुनाफा कमा सकें। दरअसल तितर,चिड़ीमार,पालतू गुलाम तितर से जुड़ी हुई कहानी हमारे द्वारा इसलिए बताई जा रही है। वह कहानी इन दिनों लोगों को  हकिकत के धरातल में देखने को मिल रही है,जिसके चलते लोग इस कहानी को खासा पसंद कर रहे हैं। लोगों की मानें तो  लगभग इस कहानी से जुड़ी हुई गतिविधियां इन दिनों गोंडवाना गोंड़ महासभा जिला बालोद छत्तिसगढ़ के अंदर देखी जा रही है। दराशल गोंडवाना गोंड़ महासभा जिला बालोद से निकल कर एक अलग आदीवासी गोंडवाना सेवा समिति के नाम से कुछ दिन पहले वजूद में आई आदीवासी समाज से जुड़े हुए यह राज्यस्तरीय नया संगठन है। इस संगठन को प्रदेश की धरातल पर लाने वाले कथित तौर पर वे आदीवासी नेता हैं जिन्होंने बालोद जिला के अंदर तूएगोंदी मामले में समाज के खिलाफ जा कर गैर समाजिक गतिविधियों को कथित तौर पर अंजाम दिया था। सर्व आदीवासी समाज को तरह तरह के अपशब्दों से अपमानित करने वाले तथाकथित संत का साथ देते हुए समाज के खिलाफ खड़े हुए थे। हालांकि यह संगठन वजूद में आते ही धमाकेदार शुरुआत करते हुए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की आतिथ्य्य में एक शानदार कार्यक्रम आयोजित कर अपनी राजनीतिक मजबूती का छाप छोड़ने में काफी हद तक सफल हुई है। चूंकि यह संगठन महज कुछ दिन पहले वजूद में आई है और आते ही इतनी बड़ी कार्यक्रम की सफल आयोजन,निश्चित रूप से कई सवालों को जन्म देती है। माना जाता है कि राजनीति में बैगर स्वार्थ जैसी कोई चीज नहीं बची है,अतः यह कार्यक्रम भी राजनीतिक स्वार्थ सिद्धि हेतू प्रायोजित किया गया हो,अतः इस कार्यक्रम की सफलता और उपलब्धी को लेकर कई तरह के सवाल लोगों के मन में व्याप्त है। लोग तितर चिड़िंमार,और पालतू तितर की कहानी को याद करते हुए छत्तिसगढ़ राज्य अंतर्गत आदीवासी समाज में हुए अलगाव को इस कहानी जोड़ कर देख रहे। शायद उन्हें भी तितर और तितर के बारे में इस कहानी और खबर के माध्यम से अंतर ज्ञात करने में आसानी हो सके। हैरत की बात यह है,कि आदीवासी समाज के अंदर फूट डालने वाले नेता आखिर कौन है,और आदीवासी समाज के अंदर इस से तीतर बाजी करके उन्हें क्या मिल राहा है? आखिर कौन चिड़ीमार है,जो आदीवासी में एकजुटता नहीं देखना चाहता है,और क्यों नहीं देखना चाहता है? निश्चित रूप से इन सवालों के जवाब गहरे हैं जिसके बारे में पालतू तितर पैदा करने वाले लोगों को भंलिभांती ज्ञात है। सूत्रों की मानें तो सर्व आदीवासी समाज छतिसगढ़ के द्वारा पेशा कानून,सिलगेर आंदोलन ,हसदेव अरण्य अभ्यारण और तूएगोंदी मामले में लगातार सरकार की नियत पर सवाल उठा रही है। वंही इन तमाम आंदोलन को छत्तिसगढ़ क्रांति सेना सहित राज्य के अलग अलग संगठन समर्थन दे रहे है। इन सभी संगठनों के द्वारा उठाई गई सवालों का मौजूदा सरकार के पास कोई जवाब नही है,जिसके पिछले दरवाजे से आगामी विधानसभा चुनाव के अंदर प्रवेश करना चाहती है कांग्रेस पार्टी की सरकार। किसी भी समाज में दो गुट समाज की पतन का साफ संदेश है,इससे ना सिर्फ आपसी विचारों में मतभेद उत्पन्न होंगे अपितु आगे चल समाजिक विवाद का कारण भी बन सकता है। अतः समाज के बुद्धिजीवियों को मामले से संबंधित तमाम पहलुओं पर गहराई से चिंतन करने की आवश्यकता है ताकि समाज में समानता बरकरार रहे है।

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