जनता की मेहनत और पसीने से कमाई हुई पैसों के दम पर डिंगे हांक रहे है प्रजातंत्र के जनसेवक
विनोद नेताम
रायपुर : भारत दुनिया का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला राष्ट्र होने का दावा करते हुए!देश में प्रजातंत्र की निर्बाध रूप से बहाली हेतू आजादी के बाद से अबतक लगातार प्रयासरत हैं!वैसे आजाद भारत की'आजादी से जुड़ी हुई,कई और ऐसे पहलू है,जो कि आज अलमारियों की शोभा बढ़ाते हुए देखे जा सकते है!कम-से-कम देश के जागरूक नागरिकों को आजादी से जुड़े हुए तमाम पहलूओ को देश के आम जनता से राय मशवरा करने हेतू सभी के समक्ष प्रस्तुत करना चाहिए! आजादी की लंबी अवधि बाद भी देश के ज्यादातर राजनीतिक दलों ने देश की आजादी को लेकर आम जनता को गुमराह करने का प्रयास किया है!जितने भी राजनीतिक दल ने देश की सत्ता पर राज किया है,उन सभी राजनीतिक दलों ने आजादी से जुड़ी हुई तथ्यों को मिटाकर कई नये तथ्यों को जन्म देते हुए आजादी का परिभाषा बदलने का प्रयास किया है! परिणामस्वरूप भारतीय लोकतंत्र की बदली हुई परिभाषा,महत्व और दशा संविधान में निहित मूल्यों को दरकिनार करते हुए राजनीतिक दलों के इच्छा मुताबिक बन कर रह गई है!!
राजनीतिक दल और पूंजीपतियो के समूह का दूसरा नाम सरकार
वैसे देखा जाए तो देश के आम नागरिकों को भारतीय उपमहाद्वीप में स्थापित प्रजातंत्र की विरासत से जुड़ी हुई सभी पहलुओं के विषय में पूर्ण रूप से जानकारी रखने का जवाबदेही सुनिश्चित किया गया है!अब इन पहलूओ को लेकर कौन कितना जानकारी रखता हैं,नहीं रखता हैं,क्यों नहीं रखता है! यह सब अलग-अलग विभिन्न प्रकार के समस्या है,जिसके चलते देश के ज्यादातर नागरिकों को आजादी की 75 साल बाद भी स्वतंत्रता की मतलब स्पष्ट ज्ञात नहीं है! वैसे भी आजादी से जुड़ी हुई तमाम पहलुओं को जानने व समझने का अधिकार हर भारतीय नागरिकों को है!लिहाजा आम जनता को भारत की स्वतंत्रता से जुड़ी हुई हर पहलूओ को गहराई से समझना और जानना चाहिए,ताकी उन्हें आजादी और स्वतंत्रता के साथ -साथ गुलामी और परतंत्रता की मायने का भी सही परख हो! ✒️लोकशाही और प्रजातंत्र के नाम राजनीति तंत्र हावी, गोरे अंग्रेजों से कहीं ज्यादा काले अंग्रेजों का बोलबाला
✒️ बहरहाल समझने और समझाने की दौर में एक बात और स्पष्ट रूप से बता देना चाहते है! आजादी के 75 साल पूरा होने की खुशी में इन दिनों देशभर में तिरंगा यात्रा की शुरुआत हो चुकी है,बावजूद देश के ज्यादातर प्रजा (जनता अवाम नागरिक) शिक्षा के मौलिक अधिकार से वंचित हैं! ऐसे में तिरंगा की आन बान और शान के विषय में कितनी जानकारी रखते हैं, यह बताना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन है! यानी की सीधे शब्दों में आजाद भारत में शिक्षा का अधिकार अब तक लोगों को पर्याप्त रुप से नहीं मिल पाया है, जिसके चलते आज भी उन्हें आजादी और आजादी से जुड़ी हुई कारंवा से संबंधित ज्यादा जानकारी का अभाव है!अब ऐसे में स्वतंत्र भारत की आज़ादी से जुड़ी हुई अन्य पहलूओ को अशिक्षा के अंधियारे में दफन जिंदा इंसान कैसे और कहां टटोले यह एक बड़ा जिंदा सवाल है!इतिहास गवाह है भारत सोने की चिड़िया के नाम से समस्त संसार में मशहूर थी, जबकि शिक्षा के नाम पर शुरू से ही देश के अंदर अंधियारा का माहौल था! किसी भी समाज और राष्ट्र बैगर शिक्षा के बिना खड़ा नहीं रह सकता है! अतः बेहतर समाज और विकसित राष्ट्र के लिए शिक्षा का होना अति आवश्यक माना जाता है! शिक्षा किसी भी व्यक्ति राष्ट्र को खड़ा रहने के लिए मजबूती प्रदान कर सकता है!भारत की आज़ादी में एक विषय शिक्षा अधिकार भी रहा,जो कि आज़ादी के 75 साल बाद भी देश के गरीबों से कोसों दूर है !
भारतीय लोकतंत्र के चार स्तंभ,चारों पर जवाबदेही बराबर लेकिन हकीकत के धरातल में चारों पर शंका
भारत के संविधान निर्माता डाॅ भीम राव आंबेडकर साहब ने भारत में शिक्षा की महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि हजार तलवार से ज्यादा ताकत एक कलम में होती है,क्योंकि शिक्षा वो शेरनी का दूध है जो दहाड़ेगा जरूर!जरा सोचिए एक तरफ देश आजादी की 75 वी महाउत्सव मनाने हेतू देश भर में तिरंगा यात्रा निकाल रही है! वंही दूसरे ओर देश के वे नागरिक भी हैं, जिन्हें आजादी के नाम पर अबतक सिर्फ तिरंगा फहराने का अवसर मिला है! वैसे उनका अधिकार शिक्षा भी शिक्षा पर है,जिसे हमारे देश के ज्यादातर शासकों ने कुछ लोगों तक ही सीमित बनाए रखा है! हालांकि ज्ञान वह प्रकाश माना जाती है,जो एक जगह से दूसरे जगह पहुंच कर ज्ञान रुपी प्रकाश से अशिक्षा की अंधकार को मिटाता है!आजादी के बाद से अबतक भारत के अंदर प्रजातंत्र के नाम पर लूट तंत्र ज्यादा हावी रहा है,लिहाजा अशिक्षा का अंधकारमय वातावरण देश के अंदर आज भी मौजूद है,और आगे भी मौजूद रहने की आशंका है!भारत आज विश्व में परचम लहराते हुए जगह जगह तिरंगा फहरा रहा है इसमें कोई संदेह नहीं है,लेकिन भारत के अंदर मौजूद अशिक्षा किसी श्राप से कम नहीं है! देश में शिक्षा की महत्व को लेकर प्रजातंत्र लोकशाही के जिम्मेदार सेवक आगे कुछ प्रयास करते हैं भी नहीं यह देखने वाली बात है।