बालोद : प्रति वर्ष की भांति इस वर्ष भी दिपावली पर्व से ठीक पहले बाजारों में सजने लगी है कोचई और कुम्हड़ा (कद्दू) का बाजार। जैसे कि हमारे सुधी पाठकों को यह बात भली-भांति से पता है कि प्राचीन काल से ही छत्तीसगढ़ राज्य की पावन सरजमीं पर दिपावली पर्व के दौरान मनाई जाने वाली गोर्वधन पूजा के दिन गाय और बैलों के साथ गोबर से निर्मित की जाने वाली गोबरधन पर्वत की पूजा का विधान परांपरागत रूप से संचालित होती है और इस बीच गाय और बैलों को छत्तीसगढ़ी अंदाज में बनाई गई कुम्हड़ा और कोचई के साथ बरा सोंहारी के मिश्रण से तैयार की गई खिचड़ी का भोज प्रदेश के हर घर में खिलाये जाने का रिवाज है। इसके पीछे का एक सत्य यह भी है कि दिपावली पर्व के दौरान किसानों के द्वारा लगाई गई फसल लगभग तैयार हो चुकी रहती है चूंकि छत्तीसगढ़ प्रदेश के अंदर मौजूद रहने वाले ज्यादातर किसान अपनी फसलों को बैलों के जरिए ही अपने घर तक ला पाने में कामयाब होते रहे हैं। अतः गोर्वधन पूजा के दिन गोवर्धन पर्वत के साथ गाय और बैलों की भी पूजा होती है और उन्हें बकायदा कुम्हड़ा और कोचई के साथ बरा और सोंहारी के मिश्रण से तैयार की गई खिचड़ी खिलाया जाता है। गौरतलब हो कि दिपावली पर्व साल में एक बार ही मनाया जाता है लिहाजा गोर्वधन पूजा के दिन बनाई जाने वाली खिचड़ी में शामिल कुम्हड़ा और कोचई का आवाक दिपावली पर्व से पूर्व लगने वाली बंजारों में नजर आने लगती है। ठीक उसी तर्ज पर इन दिनों अंचल के बाजारों में कुम्हड़ा और कोचई के साथ कांदा की आवाक बढ़ गई है। इस बीच बाजारों में सजने वाली इन विषेश सब्जियों के प्रति लोगों का रूझान भी स्वाभाविक रूप से बढ़ गया है।
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गोर्वधन पूजा में बनाई जाने वाली खिचरी के लिए बाजारों में सजने लगी कुम्हड़ा और कोचाई महफ़िल।