छत्तीसगढ़ धमतरी.. अंतरराष्ट्रीय मातृ दिवस की पूर्व संध्या युवा मोर्चा प्रदेश कार्यसमिति सदस्य जय हिंदूजा ने कोरोना से जंग जीत कर समाज में पुनः अपनी भागीदारी दे रही माताओं का सम्मान किया,जय हिंदूजा ने बताया कि माँ ही संस्कार की जननी है,माँ ही सभ्यता की जननी है और ये माताएं जो कोरोना से जंग जीत कर पुनः राष्ट्र समाज एवं परिवार के प्रति अपनी भागीदारी निभा रही हैं वो ही युवा वर्ग सहित सभी के लिये असल प्रेरणा है।

नारी का सम्मान करना और उसकी रक्षा करना भारत की प्राचीन संस्कृति है।जन्म से लेकर मृत्यु तक अपने सारे कर्त्तव्य निभाती है। वह एक माँ, पत्नी, बेटी, बहन आदि सभी रिश्तों को पूरे दायित्व और निष्ठा के साथ निभाती है।इसीलिए देश में नारी को देवी के रूप में पूजा जाता है।नारी के असंख्य रूप है कभी गार्गी, कभी मैत्रेई,कभी मेनका बनती है, तो दुष्यन्त के लिए शकुन्तला, शिवजी के लिए पार्वती, राम के लिए सीता।
माँ एक होती,परन्तु उनके अनेक और अनगिनत रूप होते हैं।
पीढ़ियों से हमारे समाज में नारी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हिन्दू गाथाओ के अनुसार चाहे वह सीता हो, द्रोपदी हो या रानी लक्ष्मीबाई, या रानी अवंतीबाई,सरोजिनी नायडू हो या सुषमा स्वराज या सुमित्रा महाजन, सभी ने अपने त्याग और शौर्य के कारण श्रद्धा और सम्मान पाया है।
प्राचीन काल से ही भारतवर्ष में स्त्रियों को सम्मान देने की परंपरा रही है, सनातन धर्म में शिव और शक्ति का अर्धनारीश्वर रुप स्त्रियों को समान रुप से समर्थ होने का उच्चतम प्रतीक है, इसी सहभागी सोच का परिणाम है कि न केवल पुरातन काल और मध्य काल में बल्कि वर्तमान समय में भी महिलाएं बढ़ चढ़ कर देश के विकास और नवोन्मेष में हर क्षेत्र में और हर स्तर पर अपनी श्रेष्ठ भूमिका का निर्वहन कर रहीं हैं।
आज देश की वित्तमंत्री के पद पर एक महिला के रुप में माननीय निर्मला सीतारमण का होना, प्रशासन में अनगिनत महिला अधिकारियों का कमान संभाले रखना, कोरोना के कठिन समय में महिला चिकित्सकों का लगातार ड्यूटी पर रहना, स्वतंत्र रुप से सेवा कार्यों मे निर्लिप्त भाव से लगी अनगिनत ज्ञात अज्ञात सभी स्त्री शक्तियों को नमन है।अपनी संतान को जन्म देने से लेकर उसे एक सफल व्यक्ति बनाने तक उसके चरित्र और जीवन को आकार देने वाली माँ की भागीदारी समाज एवं राष्ट्र के प्रति महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली माँ का सम्मान करना और वो भी तब जब वह वैश्विक महामारी कोरोना से जंग जीत कर आये उनका सम्मान करना हमारा सौभाग्य है।
जो नारी एक बलवान पुरुष को जन्म देती है, अब वक़्त आ गया है कि समाज उस नारी का सम्मान करे और उनके सोच का सम्मान करे।
नारी का सम्मान करना और उसकी रक्षा करना भारत की प्राचीन संस्कृति है।जन्म से लेकर मृत्यु तक अपने सारे कर्त्तव्य निभाती है। वह एक माँ, पत्नी, बेटी, बहन आदि सभी रिश्तों को पूरे दायित्व और निष्ठा के साथ निभाती है।इसीलिए देश में नारी को देवी के रूप में पूजा जाता है।नारी के असंख्य रूप है कभी गार्गी, कभी मैत्रेई,कभी मेनका बनती है, तो दुष्यन्त के लिए शकुन्तला, शिवजी के लिए पार्वती, राम के लिए सीता।
माँ एक होती,परन्तु उनके अनेक और अनगिनत रूप होते हैं।
पीढ़ियों से हमारे समाज में नारी की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। हिन्दू गाथाओ के अनुसार चाहे वह सीता हो, द्रोपदी हो या रानी लक्ष्मीबाई, या रानी अवंतीबाई,सरोजिनी नायडू हो या सुषमा स्वराज या सुमित्रा महाजन, सभी ने अपने त्याग और शौर्य के कारण श्रद्धा और सम्मान पाया है।
प्राचीन काल से ही भारतवर्ष में स्त्रियों को सम्मान देने की परंपरा रही है, सनातन धर्म में शिव और शक्ति का अर्धनारीश्वर रुप स्त्रियों को समान रुप से समर्थ होने का उच्चतम प्रतीक है, इसी सहभागी सोच का परिणाम है कि न केवल पुरातन काल और मध्य काल में बल्कि वर्तमान समय में भी महिलाएं बढ़ चढ़ कर देश के विकास और नवोन्मेष में हर क्षेत्र में और हर स्तर पर अपनी श्रेष्ठ भूमिका का निर्वहन कर रहीं हैं।
आज देश की वित्तमंत्री के पद पर एक महिला के रुप में माननीय निर्मला सीतारमण का होना, प्रशासन में अनगिनत महिला अधिकारियों का कमान संभाले रखना, कोरोना के कठिन समय में महिला चिकित्सकों का लगातार ड्यूटी पर रहना, स्वतंत्र रुप से सेवा कार्यों मे निर्लिप्त भाव से लगी अनगिनत ज्ञात अज्ञात सभी स्त्री शक्तियों को नमन है।अपनी संतान को जन्म देने से लेकर उसे एक सफल व्यक्ति बनाने तक उसके चरित्र और जीवन को आकार देने वाली माँ की भागीदारी समाज एवं राष्ट्र के प्रति महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली माँ का सम्मान करना और वो भी तब जब वह वैश्विक महामारी कोरोना से जंग जीत कर आये उनका सम्मान करना हमारा सौभाग्य है।
जो नारी एक बलवान पुरुष को जन्म देती है, अब वक़्त आ गया है कि समाज उस नारी का सम्मान करे और उनके सोच का सम्मान करे।